गर्ग संहिता
वृन्दावन खण्ड : अध्याय 9
भगवान शंकर आदि हम (इन्द्रियों के अधिष्ठता) देवगण ने भारतवासी इन गोपों की देग में स्थित होकर एक बार भी श्रीकृष्ण का दर्शन कर लिया, अत: हम धन्य हो गये। श्रीकृष्ण! आपके माता-पिता एवं गोप-गोपियों का तो कितना अनिर्वचनीय सौभाग्य है, जो व्रज में आपके पूर्णरूप का दर्शन कर रहे हैं। सम्पूर्ण विश्व का उपकार करने वाले, मुक्ताहार धारण करने वाले, विश्व के रचयिता, सर्वाधार, लीला के धाम, रवितनया यमुना में विहार करने वाले, क्रीड़ापरायण, श्रीकृष्णचन्द्र का अवतार ग्रहण करने वाले प्रभु मेरी रक्षा करें। वृष्णि कुल रूप सरोवर के कमलस्वरूप नन्दनन्दन, राधापति, देव-देव, मदनमोहन, व्रजपति, गोकुलपति, गोविन्द मुझ माया से मोहित की रक्षा करें। जो व्यक्ति श्रीकृष्ण की प्रदक्षिणा करता है, उसको जगत के सम्पूर्ण तीर्थों की यात्रा का फल प्राप्त होता है। वह आपके सुखदायक परात्पर ‘गोलोक’ नामक लोक को जाता है।” नारद जी कहने लगे-लोकपति लोक पितामह ब्रह्मा ने इस प्रकार सुन्दर वृन्दावन के अधिपति गोविन्द का स्तवन करके प्रणाम करते हुए उनकी तीन बार प्रदक्षिणा की और कुछ देर के लिये अदृश्य होकर गोवत्स तथा गोप-बालकों को वरदान देकर लौट जाने के लिये अनुमति की प्रार्थना की । तदनंतर श्रीहरि ने नेत्रों के संकेत से उनको जाने का आदेश दिया। लोक पितामह ब्रह्मा भी पुन: प्रणाम करके अपने लोक को चले गये। राजन! इसके उपरांत भगवान श्रीकृष्ण वन से शीघ्रतापूर्वक गोवत्स एवं गोप-बालकों को ले आये और यमुना तट पर जिस स्थान पर गोपमण्डली विराजित थी, उन लोगों को लेकर उसी स्थान पर पहुँचे। गोवत्सों के साथ लौटे हुए श्रीकृष्ण को देखकर उनकी माया से विमोहित गोपों ने उतने समय को आधे क्षण-जैसा समझा। वे लोग गोवत्सों के साथ आये हुए श्रीकृष्ण से कहने लगे-‘आप शीघ्रता से आकर भोजन करें। प्रभो! आपके चले जाने के कारण किसी ने भी भोजन नहीं किया। ’इसके उपरांत श्रीकृष्ण ने हँसकर बालकों के साथ भोजन किया और बालकों को अजगर का चमड़ा दिखाया। तदनंतर बलराम जी के साथ गोपों से घिरे हुए श्रीकृष्ण वत्सवृन्द को आगे करके धीरे-धीरे व्रज को लौट आये। सफेद, चितकबरे, लाल, पीले, धूम्र एवं हरे आदि रंग और स्वभाव वाले गोवत्सों को आगे करके धीरे-धीरे सुखद वन से गोष्ठ में लौटते हुए गोपमण्डली के बीच स्थित नन्दनन्दन की मैं वन्दना करता हूँ। राजन! श्रीकृष्ण के विरह में जिनको क्षणभर का समय युग के समान लगता था, उन्हीं के दर्शन से उन गोपियों को आनन्द प्राप्त हुआ। बालकों ने अपने-अपने घर जाकर गोष्ठों में अलग-अलग बछड़ों को बाँधकर अघासुर-वध एवं श्री हरि द्वारा हुई आत्म रक्षा के वृतांत का वर्णन किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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