गर्ग संहिता
वृन्दावन खण्ड : अध्याय 9
आपका परम सुन्दर रूप मन्मथ के मन को भी हरने वाला है। मेरे नेत्रों में सर्वदा मकर कुण्डलधारी श्यामकलवर श्रीकृष्ण के उस रूप का प्रकाश होता रहे। जिनकी लीला वैकुण्ठ लीला की अपेक्षा भी श्रेष्ठ है और जिनके परम श्रेष्ठ मनोहर रूप को देवगण भी नमस्कार करते हैं, उन गोपलीलाकारी गोलोकनाथ को मैं मस्तक नवाकर प्रणाम करता हूँ। वसन्तकालीन सुन्दर कण्ठ वाले कोकिलादि पक्षियों से युक्त, सुगन्धित, नवीन पल्लवयुक्त वृक्षों से अलंकृत, सुधा के समान शीतल, धीर (मन्द) पवन की क्रीड़ा से सुशोभित वृन्दावन में विचरण करने वाले श्रीकृष्ण जय हो! वे सदा भक्तों की रक्षा करें । “आपके विशाल नेत्र तथा उनकी तिरछी चितवन कमलपुष्पों का मान और झूलते हुए मोतियों का अभिमान दूर करने वाली है, भूतल के समस्त रसिकों को रस का दान करती है तथा कामदेव के बाणों के समान पैनी एवं प्रीतिदान में निपुण है। जिनकी नखमणियाँ शरत्कालीन चन्द्रमा के समान सुखकर, सुरक्त, हृदयग्राहिणी, गाढ़ अन्धकार का नाश करने वाली और जगत के समस्त प्राणियों के पापों का ध्वंस करने वाली हैं तथा स्वर्ग में देव मण्डली जिनका श्रीविष्णु एवं हरि की नखावली के रूप में स्तवन करती है, मैं उनकी अराधना करता हूँ। आपके पादपद्भों की सर्वदा बजने वाली, श्रीहरि के सैकड़ों किरणों से युक्त (सुदर्शन) चक्र के समान आकार वाली पैजनियाँ ऐसी हैं, जिनसे गोल घेरे की भाँति किरणें इस प्रकार निकलती हैं, जैसे सूर्य के प्रकाशयुक्त रथ चक्र की परिधि हो, अथवा जो आपके पादद्भों की परिधि के समान सुशोभित हैं। आपकी कमर में छोटी-छोटी घंटियों से युक्त दिव्य पीताम्बर जगमगा रहा है। मैं अक्लिष्टकर्मा भगवान श्रीकृष्ण (आप) के उस मनोहर रूप की आराधना करता हूँ। जिनके कांतिमान कसौटीसदृश एवं भृगुपद-अंकित विशाल वक्ष:स्थल पर लक्ष्मी विलास करती हैं, जिनके गले में स्वर्णमणि एवं मोतियों की लड़ियों से युक्त तथा तारों के समान झिलमिल प्रकाश करने वाले तथा भ्रमरों की ध्वनि से युक्त हीरों के हार हैं, जो सिन्दूर वर्ण की सुन्दर अँगुलियों से वंशी बजा रहे हैं, जिनकी अँगुलियों में सोने की अँगूठियाँ सुशोभित हैं, जिनके दोनों हाथ द्विजों को दान देने वाले, चन्द्रमा के समान नखों से युक्त एवं कामदेव के वन के कदम्ब वृक्षों के पुष्पों की सुगन्ध से सुवासित हैं, जिनकी मन्दगति राजहंस की भाँति सुन्दर है, जिनके कन्धे गले तक ऊँचे उठे हुए हैं, उन श्रीहरि की मेघ माला का मान हरण करने वाली मनोहर काकुल का मैं स्मरण करता हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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