गर्ग संहिता
वृन्दावन खण्ड : अध्याय 8
श्री नारद जी ने कहा- जिस समय बलराम जी यों कह रहे थे, उसी समय ब्रह्मा जी वहाँ आये, और उन्होंने गोवत्सों एवं गोप-बालकों के साथ बलराम जी एवं श्रीकृष्ण के दर्शन किये। ‘अहो ! मैं जिस स्थान पर गोवत्स तथा गोप-बालकों को रख आया था, वहाँ से श्रीकृष्ण उनको ले आये हैं।’ यों कहते हुए ब्रह्मा जी उस स्थान पर गये और वहाँ पर उन सबको पहले की तरह ही पाया। ब्रह्माजी उनको निद्रित देखकर पुन: व्रज में आये और गोप-बालकों के साथ श्री हरि के दर्शन करके विस्मित हो गये। वे मन ही मन कहने लगे- ‘ओहो, कैसी विचित्रता है। ये लोग कहाँ से यहाँ आये और पहले की ही भाँति श्रीकृष्ण के साथ खेल रहे हैं ? यह सब खेल करने में मुझे एक त्रुटि (क्षण) जितना काल लगा, परंतु इतने में इस भूलोक में एक वर्ष पूरा हो गया। तथापि सभी प्रसन्न हैं, कहीं किसी को इस घटना का पता भी नहीं चला।’ इस प्रकार से ब्रह्मा जी मोहातीत विश्वमोहन को मोहित करने गये। परंतु अपनी माया के अन्धकार में वे स्वयं अपने शरीर को भी नहीं देख सके। गोप-बालकों के हरण से जगत्पति की तो कुछ हानि हुई नहीं, अपितु श्रीकृष्ण रूप सूर्य के सम्मुख ब्रह्माजी ही जुगनू-से दीखने लगे। ब्रह्मा के इस प्रकार मोहित एवं जड़ीभूत हो जाने पर श्रीकृष्ण ने कृपापूर्वक अपनी माया को हटाकर उनको अपने स्वरूप का दर्शन कराया। भक्ति के द्वारा ब्रह्मा जी को ज्ञान नेत्र प्राप्त हुए। उन्होंने एक बार गोवत्स एवं गोप-बालक-सबको श्रीकृष्ण रूप देखा। राजन! ब्रह्मा जी ने शरीर के भीतर और बाहर अपने सहित सम्पूर्ण जगत को विष्णुमय देखा । इस प्रकार दर्शन करके ब्रह्माजी तो जड़ता को प्राप्त होकर निश्चेष्ट हो गये। ब्रह्माजी को वृन्दा देवी द्वारा अधिष्ठित वृन्दावन में जहाँ-तहाँ दीखने वाली भगवान-की महिमा देखने में असमर्थ जानकर श्री हरि ने माया का पर्दा हटा लिया। तब ब्रह्माजी नेत्र पाकर, निद्रा से जगे हुए की भाँति उठकर, अत्यंत कष्ट से नेत्र खोलकर अपने सहित वृन्दावन को देखने में समर्थ हुए। वहाँ पर वे उसी समय एकाग्र होकर दसों दिशाओं में देखने लगे और वसंतकालीन सुन्दर लताओं से युक्त रमणीय श्रीवृन्दावन का उन्होंने दर्शन किया। वहाँ बाघ के बच्चों के साथ मृग-शावक खेल रहे थे। बाज और कबूतर में, नेवला और साँप में वहाँ जन्म जात वैर भाव नहीं था। ब्रह्मा जी ने देखा कि एक मात्र श्रीकृष्ण ही हाथ में भोजन का कौर लिये हुए प्यारे गोवत्सों को वृन्दावन में ढूँढ रहे हैं। गोलोकपति साक्षात श्री हरि को गोपाल-वेष में अपने को छिपाये हुए देखकर तथा ये साक्षात श्री हरि हैं-यह पहचान कर ब्रह्मा जी अपनी करतूत को स्मरण करके भयभीत हो गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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