गर्ग संहिता
वृन्दावन खण्ड : अध्याय 7
श्रीकृष्ण ने भी उस ग्रास का भोग लगाकर सबकी ओर देखते हुए कहा- ‘भैया ! अन्य बालकों को अपनी-अपनी स्वादिष्ट सामग्री चखाओ। मैं स्वाद के बारे में नहीं जानता।’ बालकों ने ‘ऐसा ही हो’ कहकर अन्यान्य बालकों को भोजन के ग्रास ले जाकर दिये। वे भी उन ग्रासों को खाकर एक दूसरे की हँसी करते हुए उसी प्रकार बोल उठे। सुबल ने पुन: हरि के मुख में ग्रास दिया, परंतु श्रीकृष्ण उस कौर में से थोड़ा-सा खाकर हँसने लगे। इस प्रकार जिस-जिसने कौर खाया, वे सभी जोर से हँसने लगे। बालक बोले- ‘नन्दनन्दन ! सुनो ! जिसके नाना मूढ़ (मूर्ख) हैं, उसको भोजन का ज्ञान नहीं रहता। इसलिये तुमको स्वाद प्राप्त नहीं हुआ’। इसके उपरांत श्री दामा ने माधव को और अन्य बालकों को भोजन के ग्रास दिये। व्रज-बालकों ने उसको उत्तम बताकर उसकी बहुत प्रशंसा की। इसके बाद वरूपथ नाम के एक बालक ने पुन: श्रीकृष्ण को एवं अन्य बालकों को आग्रह पूर्वक कौर दिये। श्रीकृष्ण आदि वे सभी लोग थोड़ा-थोड़ा खाकर हँसने लगे। बालकों ने कहा- ‘यह भी सुबल के ग्रास-जैसा ही है। हम सभी उसे खाकर उद्विग्र हुए हैं।’ इस प्रकार सभी ने अपने-अपने ग्रास चखाये और सभी परस्पर हँसने-हँसाने और खेलने लगे। कटि वस्त्र में वेणु, बगल में लकुटी एवं सींगा, बायें हाथ में भोजन का कौर, अंगुलियों के बीच में फल, माथे पर मुकुट, कन्धे पर पीला दुपट्टा, गले में वनमाला, कमर में करधनी, पैरों में नुपूर और हृदय पर श्री वत्स तथा कौस्तुभमणि धारण किये हुए श्रीकृष्ण गोप-बालकों के बीच में बैठकर अपनी विनोद भरी बातों से बालकों को हँसाने लगे। इस प्रकार यज्ञभोक्ता श्री हरि भोजन करने लगे, जिसको देवता एवं मनुष्य आश्चर्यचकित होकर देखते रहे। इस प्रकार श्रीकृष्ण के द्वारा रक्षित बालकों का जिस समय भोजन हो रहा था, उसी समय बछड़े घास की लालच में पड़कर दूर के एक गहन वन में घुस गये। गोप-बालक भय से व्याकुल हो गये। यह देखकर श्रीकृष्ण बोले-‘तुम लोग मत जाओ। मैं बछड़ों को यहाँ ले आऊँगा।’ यों कहकर श्रीकृष्ण उठे और भोजन का कौर हाथ में लिये ही गुफाओं एवं कुंजों में तथा गहन वन में बछड़ों को ढूँढ़ने लगे । जिस समय व्रजवासी बालकों के साथ श्रीकृष्ण यमुना तट पर रुचि पूर्वक भोजन कर रहे थे, उसी समय पध्मयोनी ब्रह्मा जी अघासुर की मुक्ति देखकर उसी स्थान पर पहुँच गये। इस दृश्य को देखकर ब्रह्माजी मन ही मन कहने लगे- ‘ये तो देवाधिदेव श्री हरि नहीं हैं, अपितु कोई गोपकुमार हैं। यदि ये श्रीहरि होते तो गोप-बालकों के साथ इतने अपवित्र अन्न का भोजन कैसे करते?’ राजन! ब्रह्मा जी परमात्मा की माया से मोहित होकर बोल गये। उन्होंने उनकी (भगवान की) मनोज्ञ महिमा को जानने का निश्च्य किया। ब्रह्माजी स्वयं आकाश में अवस्थित थे। इसके उपरांत अघासुर-उद्धार की लीला के दर्शन से चकित होकर समस्त गायों-बछड़ों तथा गोप-बालकों का हरण करके वे अंतर्धान हो गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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