गयौ कूदि हनुमंद जब सिंधु-पारा -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग धनाश्री


 
गयौ कूदि हनुमंद जब सिंधु-पारा।
सेष के सीस, लागे कमठ पीठि सौं, धँसे गिरिवर सवै तासु भारा।
लंक गढ़ माहि आकास मारग गयौ, चहूँ दिसि बज्र लागे किवारा।
पौरि सब देखि सो असोक वन मैं गयौ, निरखि सीता छप्यौ वृच्छा-डारा।
सोच लाग्यौ करन, यहै घौं जानकी, कै कोऊ और, मोहिं नहिं चिन्हारा।
सूर आकसबानी भई तबै तहै, यहै वैदेहि है, करु जुहारा॥76॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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