गमन करत रबि लखि अस्ताचल -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

बाल-माधुरी की झाँकियाँ

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राग गौरी- तीन ताल


गमन करत रबि लखि अस्ताचल मनमोहन लै गोधन संग।
उतरि रहे गोबरधन गिरि ते; रँगे रँगीले नित नव रंग॥
त्रिविध सुगंध पवन मनभावन परसत स्याम सलोने अंग।
फहरत बसन सुमन बर माला प्रगटत प्रकृति विचित्र तरंग॥
अलि-कुल-मद-हरनी अलकावलि सिर सिखिपिच्छ मुकुट छबिसार।
नयन बिसाल रसाल चित्तहर पल पल मोद बढ़ावनहार॥
मुरली बरसावत मधु रस अति उमगावत सब दिसि रसधार।
सोहत सुभग सुवेष नीलमनि सुषमा अमित करत बिस्तार॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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