खेलन जाहू बाल सब टेरत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग



खेलन जाहू बाल सब टेरत।
यह सुनि कान्‍ह भए अति आतुर, द्वारैं तन फिरि हेरत।
बार-बार हरि मातहिं बूझत, कहि चौगान कहाँ है।
दधि-मथनी के पाछैं देखौ, लै मैं धरयौ तहाँ है।
लै चौगान-बटा अपनैं कर, प्रभु आए घर बाहर।
सूर स्‍याम पूछत सब ग्‍वालनि, खेलौगे किहिं ठाहर।।243।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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