खेलन अब मेरी जाइ बलैया -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी



खेलन अब मेरी जाइ बलैया।
जबहिं मोहिं देखत लरिकनि सँग तबहिं खिझत बल भैया।
मोसौं कहत तात बसुदेव कौ, देवकि तेरी मैया।
मोल लियौ कछु दै करि तिनकौं, करि-करि जतन बढ़ैया।
अब बाबा कहि कहत नंद सौं, जसुमति सौं कहै मैया।
ऐसैं कहि सब मोहिं खिझावत, तब उठि चल्यौ खिसैया।
पाछै नंद सुनत हे ठाढ़े, हँसत हँसत उर लैया।
सूर नंद बलरामहिं धिरयौ, तब मन हरष कन्हैया।।217।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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