खेलत बनै धोष निकास -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग



खेलत बनै धोष निकास।
सुनहु स्‍याम, चतुर सिरोमनि, इहाँ है घर पास।
कान्‍ह हलधर बरी दोऊ, भुजा बल अति जोर।
सुबल, श्रीदामा, सुदामा वै भए इक ओर।
और सखा बँटाइ लीन्‍हे, गोप-बालक-बृंद।
चले ब्रज की खोरि खेलत, अति उमँगि नँद-नंद।
बटा धरनी डारि दीनौ लै चले ढरकाइ।
आपु अपनी घात निरखत, खेल जम्‍यौ बनाइ।
सखा जीतत स्‍याम जाने, सब करी कछु पेल।
सूरदास कहत सुदामा, कौन ऐसौ खेल।।244।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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