खाये पान बीरी सी बिलोचन विराजैं आज ,
अंजन अंजाये अधराधर अमी के हैं ।
कहै पदमाकर गुनाकर गुबिन्द देखौ,
आरसी लै अमल कपोल किन पी के हैं ।
ऎसो अवलोकिबेई लायक मुखारबिन्द ,
जाहि लखि चन्द अरविन्द होत फीके हैं ।
प्रेम रस पागि जागि आये अनुरागि यातें,
अब हम जानी कै हमारे भाग नीके हैं ।