क्‍यौं तू गोविंद नाम विसारौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग विलावल




क्‍यौं तू गोविंद नाम विसारौ।
अजहूँ चेति, भजन करि हरि कौ, काल फिरत सिर ऊपर भारौ।
धन-सुत दारा काम न आवैं, जिनहिं लागि आपुनपौ हारौ।
सूरदास भगवंत-भजन विनु, चल्‍यौ पछिताइ, नयन जल ढारौ।।80।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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