|
भगवान श्रीकृष्ण की अनन्त लीला है। अनादिकाल से लेकर अब तक का यह विश्व ब्रह्माण्ड उन्हीं की लीला का विलास है। किसकी शक्ति है जो श्रीकृष्ण की अनन्त लीलाओं का थाह पा सके और उनका वर्णन कर सके ? भगवान श्रीकृष्ण की द्वापर युग में होने वाली सवा सौ वर्ष की लीलाएं भी इतनी अपार, सारगर्भित और दिव्य हैं कि उनका पार पाना, समझना और उनमें प्रवेश करना अपने पुरुषार्थ से किसी के यिले भी सम्भव नहीं है। समझना और प्रवेश करना तो दूर रहा, असंख्य प्राचीन ग्रन्थ नष्ट हो जाने पर भी इस समय जो कुछ प्राचीन गन्थ उपलब्ध हैं उन सब में वर्णन की गयी श्रीकृष्ण-लीलाओं का अध्ययन, संकलन, मनन, निदिध्यासन करना भी बड़ी ही कठिन है। फिर इस प्रपंचमय केवल भोगोन्मुख युग में, जहाँ शिक्षित कहाने वाले पुरुषों को ईश्वर अस्तित्व को खुल हृदय से स्वीकार करने में भी संकोच और भय का बोध होने लगा है, पूर्ण ब्रह्म मानकर पूर्ण ब्रह्म भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का श्रवण, अध्ययन, संकलन, प्रकाशन तो बहुत ही दुरूह है।
अनेक बाधा विघ्नों से भरे हुए क्षुद्र जीवन में मुझ जैसे प्रेम विरहित विद्या-बुद्धि शून्य प्राणी के लिये तो श्रीकृष्ण की लीलाओं का अध्ययन, संकलन और प्रकाश पिपीलिका के समुद्र-लंघन की चेष्ट के सदृश हास्यास्पद ही है। इतना होने पर भी मैंने श्रीकृष्णांक के नाम से ‘कल्याण’ का यह अंक निकालने की जो धृष्टता की है, वह मेरे लिये बड़े ही संकोच का विषय है। इसका कारण तो भगवान श्रीकृष्ण ही जानते है। मैं लगातार दो-तीन वर्षों से ‘कल्याण’ से अलग होने की इच्छा कर रहा हूँ, परन्तु पता नहीं, क्यों भगवान परवश की भाँति मुझसे यह कार्य करवा रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि भगवान की प्रत्येक प्रेरणा और प्रत्येक कार्य हमारे परम कल्याण के लिये होते हैं। भगवान के विधान पर असंतोष करना अपराध है और इसी से मन यह चाहता भी है कि मुझे किसी कार्य के करने और छोड़ने से क्या प्रयोजन है, अन्तर्यामी यंत्री जिस प्रकार घुमाना चाहते हैं उसी प्रकार परमानन्द के साथ यंत्रवत घूमते रहना चाहिये। परन्तु क्या किया जाये, अहंकार बाधक होकर समय-समय पर अनुकूल प्रतिकूल की कल्पना करवा ही डालता है और तदनुकूल चेष्टा भी हो जाती है।
|
|