क्यौ करि सकौं आज्ञा भंग -सूरदास

सूरसागर

एकादश स्कन्ध

Prev.png
राग केदारौ





क्यौ करि सकौं आज्ञा भंग।
करुन-मय-पद-कमल लालच, नहिंन छूटत सग।।
यह रजायसु होत मोसन, कहत बदरी जान।
कह करौ मम पाप पूरन, सुनि न निकसत प्रान।।
मैंऽपराधी ब्रजबधुनि सौ, कहे बचन विष तूल।
मोहिं तजि कै अबर को बिच, सहै ऐसे सूल।।
अब न जौ तुम जाहु ऊधौ, मिटै जुग भृत रीति।
हौ जु तेरी सकल जानत, महा मोसन प्रीति।।
सकल ज्ञान प्रबोधि उनसौ, कहि कथा समुझाइ।
जादवन कौ प्रलय सुनि वे, मरहिंगी अकुलाइ।।
अति विषाद सु हृदै करि करि, उठि चल्यौ ह्वै दीन।
‘सूर’ प्रभु तुम कृपासागर, किन भयौ हौ मौन।। 2 ।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः