- महाभारत शल्य पर्व के अंतर्गत 22वें अध्याय में कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं के मध्य घोर संग्राम का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]
विषय सूची
दोनों पक्ष के योद्धाओं का आपस में युद्ध
संजय कहते हैं- महाराज! रणक्षेत्र में कुपित हुए द्रोणपुत्र अश्वत्थामा ने सम्पूर्ण दिशाओं में छोडे़ गये अनेक बाणों द्वारा भीमसेन को आगे बढ़ने से रोक दिया। उस समय संग्राम में न तो वीरों की पहचान होती थी और न दिशाओं की, फिर अवान्तर दिशाओं (कोणों) की तो बात ही क्या है?[1] भारत! वे दोनों वीर क्रूरतापूर्ण कर्म करने वाले और शत्रुओं के लिये दुःसह थे। अतः एक दूसरे के प्रहार का भरपूर जवाब देने की इच्छा रखकर वे घोर युद्ध करने लगे। प्रत्यंचा खींचने से उनके हाथों की त्वचा बहुत कठोर हो गयी थी और वे सम्पूर्ण दिशाओं को आतंकित कर रहे थे।[2]
दूसरी ओर वीर शकुनि रणभूमि में युधिष्ठिर को पीड़ा देने लगा। प्रभो! सुबल के उस पुत्र ने युधिष्ठिर के चारों घोड़ों को मारकर सम्पूर्ण सेनाओं का क्रोध बढ़ाते हुए बड़े जोर से सिंहनाद किया। इसी बीच में प्रतापी सहदेव युद्ध में किसी से परास्त न होने वाले वीर राजा युधिष्ठिर को अपने रथ पर बिठाकर दूर हटा ले गये। तदनन्तर धर्मपुत्र युधिष्ठिर ने दूसरे रथ पर आरूढ़ हो पुनः धावा किया और शकुनि को पहले नौ बाणों से घायल करके फिर पांच बाणों से बींध डाला। इसके बाद सम्पूर्ण धनुर्धरों में श्रेष्ठ युधिष्ठिर ने बड़े जोर से सिंहनाद किया। मान्यवर! उसका वह युद्ध विचित्र, भयंकर, सिद्धों और चारणों द्वारा सेवित तथा दर्शकों का हर्ष बढ़ाने वाला था।
दूसरी ओर अमेय आत्मबल से सम्पन्न उलूक ने महाधनुर्धर रणदुर्भद नकुल पर चारों ओर से बाणों की वर्षा करते हुए धावा किया। इसी प्रकार शूरवीर नकुल ने रणभूमि में शकुनि के पुत्र को बड़ी भारी बाण वर्षा के द्वारा सब ओर से अवरुद्ध कर दिया।। वे दोनों वीर महारथी उत्तम कुल में उत्पन्न हुए थे! अतः समरांगण में एक-दूसरे के प्रहार का प्रतीकार करने की इच्छा रखकर जूझते दिखायी देते थे। राजन! इसी तरह शत्रुसंतापी सात्यकि कृतवर्मा के साथ युद्ध करते हुए युद्धस्थल में उसी प्रकार शोभा पाने लगे, जैसे इन्द्र बलि के साथ।
दुर्योधन और धृष्टद्युम्न का युद्ध
दुर्योधन ने युद्धस्थल में धृष्टद्युम्न का धनुष काट दिया और धनुष कट जाने पर उन्हें पैने बाणों से बींध डाला। तब धृष्टद्युम्न भी दूसरा उत्तम धनुष लेकर समरभूमि मे सम्पूर्ण धनुर्धरों के देखते-देखते राजा दुर्योधन के साथ युद्ध करने लगे। भरतश्रेष्ठ! रणभूमि में उन दोनों का महान युद्ध ऐसा जान पड़ता था, मानों मद की धारा बहाने वाले दो उत्तम मतवाले हाथी आपस में जूझ रहे हों।
कृपाचार्य का द्रौपदी के पुत्रों से युद्ध
दूसरी ओर शूरवीर कृपाचार्य ने रणभूमि में कुपित हो महाबली द्रौपदी के पुत्रों को झुकी हुई गाँठवाले बहुत-से बाणों द्वारा घायल कर दिया। जैसे देहधारी जीवात्मा का पाँचों इन्द्रियों के साथ युद्ध हो रहा हो, उसी प्रकार उन पाँचों भाईयों के साथ कृपाचार्य का युद्ध हो रहा था। धीरे-धीरे वह युद्ध अत्यन्त घोर, अनिवार्य और अमर्यादित हो गया। जैसे इन्द्रियाँ मूढ़ मनुष्य को पीड़ा देती हैं, उसी प्रकार वे पाँचों भाई कृपाचार्य को पीड़ित करने लगे। कृपाचार्य भी अत्यन्त रोष में भरकर रणक्षेत्र में उन सबके साथ युद्ध कर रहे थे।। भारत! उनका उन द्रौपदी पुत्रों के साथ ऐसा विचित्र युद्ध होने लगा, जैसे बारंबार उठ-उठकर विषयों की ओर प्रवृत होने वाली इन्द्रियों के साथ देहधारियों का युद्ध होता रहता है।
युद्ध के समय रणभूमि की स्थिति
प्रजानाथ! उस समय मनुष्य मनुष्यों से, हाथी हाथियों से, घोडे़ घोड़ों से और रथी रथियों से भिड़ गये थे। फिर उनमें अत्यन्त घोर घमासान युद्ध होने लगा। प्रभो! महाराज! यह विचित्र, यह घोर, यह रौद्र युद्ध इस प्रकार बहुत से भीषण युद्ध चलने लगे। राजन! उनके वाहनों से, हवा से और दौड़ते हुए घुड़सवारों से उड़ायी गयी भयंकर धूल सब ओर व्याप्त दिखायी देती थी। रथ के पहियो और हाथियों के उच्छ्वासों से ऊपर उठायी हुई धूल संध्याकाल के मेघों के समान सूर्य के मार्ग में छा गयी थी। उस धूल के सम्पर्क में आकर सूर्य प्रभावहीन हो गये थे तथा पृथ्वी और वे महारथी शूरवीर भी ढक गये थे। भरतश्रेष्ठ! तदनन्तर दो ही घड़ी में वीरों के रक्त से धरती सिंच उठी और सब ओर की धूल बैठ जाने के कारण रणक्षेत्र निर्मल हो गया। वह भयंकर दिखायी देनेवाली तीव्र धूलि सर्वथा शांत हो गयी। भारत! राजेन्द्र! तब मैं फिर उस दारुण मध्याहृकाल में अपने बल और श्रेष्ठता के अनुसार अनेक द्वन्द्वयुद्ध देखने लगा। योद्धाओं के कवचों की प्रभा वहाँ अत्यन्त उज्ज्वल दिखायी देती थी। जैसे पर्वत पर जलते हुए विशाल बाँसों के वन से प्रकट होने वाला चटचट शब्द सुनायी देता है, उसी प्रकार युद्ध स्थल में बाणों के गिरने का भयंकर शब्द वहाँ गूँज रहा था।[2]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
सम्बंधित लेख
महाभारत शल्य पर्व में उल्लेखित कथाएँ
शल्य और दुर्योधन वध के समाचार से धृतराष्ट्र का मूर्च्छित होना
| धृतराष्ट्र को विदुर द्वारा आश्वासन देना
| दुर्योधन के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप करना
| धृतराष्ट्र का संजय से युद्ध का वृत्तान्त पूछना
| कर्ण के मारे जाने पर पांडवों के भय से कौरव सेना का पलायन
| भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदलों का वध
| अर्जुन द्वारा कौरवों की रथसेना पर आक्रमण
| दुर्योधन का अपने सैनिकों को समझाकर पुन: युद्ध में लगाना
| कृपाचार्य का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना
| दुर्योधन का कृपाचार्य को उत्तर देना
| दुर्योधन का संधि स्वीकर न करके युद्ध का ही निश्चय करना
| अश्वत्थामा का शल्य को सेनापति बनाने का प्रस्ताव
| दुर्योधन के अनुरोध पर शल्य का सेनापति पद स्वीकार करना
| शल्य के वीरोचित उद्गार
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को शल्यवध हेतु उत्साहित करना
| उभयपक्ष की सेनाओं का रणभूमि में उपस्थित होना
| कौरव-पांडवों की बची हुई सेनाओं की संख्या का वर्णन
| कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध
| पांडव वीरों के भय से कौरव सेना का पलायन
| नकुल द्वारा कर्ण के तीन पुत्रों का वध
| कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का भयानक युद्ध
| शल्य का पराक्रम
| कौरव-पांडव योद्धाओं के द्वन्द्वयुद्ध
| भीम के द्वारा शल्य की पराजय
| भीम और शल्य का भयानक गदा युद्ध
| दुर्योधन द्वारा चेकितान का वध
| दुर्योधन की प्रेरणा से कौरव सैनिकों का पांडव सेना से युद्ध
| युधिष्ठिर और माद्रीपुत्रों के साथ शल्य का युद्ध
| मद्रराज शल्य का अद्भुत पराक्रम
| अर्जुन और अश्वत्थामा का युद्ध
| अश्वत्थामा के द्वारा सुरथ का वध
| दुर्योधन और धृष्टद्युम्न का युद्ध
| शल्य के साथ नकुल और सात्यकि आदि का घोर युद्ध
| पांडव सैनिकों और कौरव सैनिकों का द्वन्द्वयुद्ध
| भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय
| युधिष्ठिर द्वारा शल्य की पराजय
| भीम द्वारा शल्य के घोड़े और सारथि का वध
| युधिष्ठिर के द्वारा शल्य का वध
| युधिष्ठिर के द्वारा शल्य के भाई का वध
| सात्यकि और युधिष्ठिर द्वारा कृतवर्मा की पराजय
| मद्रराज के अनुचरों का वध और कौरव सेना का पलायन
| पांडव सैनिकों द्वारा पांडवों की प्रशंसा और धृतराष्ट्र की निन्दा
| भीम द्वारा इक्कीस हज़ार पैदलों का संहार
| दुर्योधन का अपनी सेना को उत्साहित करना
| धृष्टद्युम्न द्वारा शाल्व के हाथी का वध
| सात्यकि द्वारा शाल्व का वध
| सात्यकि द्वारा क्षेमधूर्ति का वध
| कृतवर्मा का सात्यकि से युद्ध तथा उसकी पराजय
| दुर्योधन का पराक्रम
| कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घोर संग्राम
| कौरव पक्ष के सात सौ रथियों का वध
| उभय पक्ष की सेनाओं का मर्यादा शून्य घोर संग्राम
| शकुनि का कूट युद्ध और उसकी पराजय
| अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से दुर्योधन के दुराग्रह की निन्दा
| अर्जुन द्वारा कौरव रथियों की सेना का संहार
| अर्जुन और भीम द्वारा कौरवों की रथसेना एवं गजसेना का संहार
| अश्वत्थामा आदि के द्वारा दुर्योधन की खोज
| सात्यकि द्वारा संजय का पकड़ा जाना
| भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध
| भीम के द्वारा कौरवों की चतुरंगिणी सेना का संहार
| श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत
| अर्जुन के द्वारा सत्यकर्मा और सत्येषु का वध
| अर्जुन के द्वारा सुशर्मा का उसके पुत्रों सहित वध
| भीम के द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शन का अन्त
| सहदेव के द्वारा उलूक का वध
| सहदेव के द्वारा शकुनि का वध
ह्रदप्रवेश पर्व
बची हुई समस्त कौरव सेना का वध
| संजय का क़ैद से छूटना
| दुर्योधन का सरोवर में प्रवेश
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गदा पर्व
अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा की सरोवर में दुर्योधन से बातचीत
| युधिष्ठिर का सेना सहित सरोवर पर जाना
| कृपाचार्य आदि का सरोवर से दूर हट जाना
| युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण की बातचीत
| सरोवर में छिपे दुर्योधन के साथ युधिष्ठिर का संवाद
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| कृष्ण के आक्षेप पर दुर्योधन का उत्तर
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| पांडवों का कौरव शिबिर में पहुँचना
| अर्जुन के रथ का दग्ध होना
| पांडवों का कृष्ण को हस्तिनापुर भेजना
| कृष्ण का हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र और गांधारी को आश्वासन देना
| कृष्ण का पांडवों के पास लौटना
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| दुर्योधन को देखकर अश्वत्थामा का विषाद एवं प्रतिज्ञा करना
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