को जानै हरि की चतुराई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग आसावरी


को जानै हरि की चतुराई।
नैन-सैन संभाषन कीन्हौ, प्यारी की उर-तपनि मिटाई।।
मनहीं मन दोउ रीझि मगन भए, अति आनंद उर मैं न समाई।
कर पल्लव हरि भाव बतावत, एक प्रान द्वै देह बनाई।।
जननी-हृदय प्रेम उपजायौ, कहति कान्ह सौं लेहु बुलाई।
सूर स्याम गहि बाँह राधिका, ल्याये महरि बिहँसि बैठाई।।701।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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