को जानै हरि की चतुराई।
नैन-सैन संभाषन कीन्हौ, प्यारी की उर-तपनि मिटाई।।
मनहीं मन दोउ रीझि मगन भए, अति आनंद उर मैं न समाई।
कर पल्लव हरि भाव बतावत, एक प्रान द्वै देह बनाई।।
जननी-हृदय प्रेम उपजायौ, कहति कान्ह सौं लेहु बुलाई।
सूर स्याम गहि बाँह राधिका, ल्याये महरि बिहँसि बैठाई।।701।।