कोउ पहुँचे कोउ मारग माहीं। बहुत गए घर, बहुत जाहीं।।
काहू कैं मन कछु दुख नाहीं। अरसि-परसि हँसि-हँसि लपटाहीं।।
आनँद करत सबै ब्रज आए। निकटहिं आइ लोग नियराए।।
भीर भई बहु खोरि जहाँ तहँ। जैसें नदी मिलहिं सागर महँ।।
नर-नारी सरिता सब आगर। सिंधु मनौ यह घोष उजागर।।
मथनहार हरि, रतन कुमारी। चंद्र-बदनि राधा सुकुमारी।।
सूर स्याम आए नँद-साला। पहुँचे घरनि आइ नर-बाला।।920।।