कृष्ण द्वारा पांडवों का समाधान

महाभारत शल्य पर्व में गदा पर्व के अंतर्गत 61वें अध्याय में कृष्ण द्वारा पांडवों के समाधान का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

कृष्ण द्वारा पांडवों को समझाना

संजय कहते हैं- राजन! बुद्धिमान कुरुराज दुर्योधन की यह बात पूरी होते ही उसके ऊपर पवित्र सुगंधवाले पुष्पों की बड़ी भारी वर्षा होने लगी। गन्धर्वगण अत्यन्त मनोहर बाजे बजाने लगे और अप्सराएं राजा दुर्योधन के सुयश संबंधी गीत गाने लगी। राजन! उस समय सिद्धगण बोल उठे- बहुत अच्छा, बहुत अच्छा। फिर पवित्र गन्धवाली मनोहर, मृदुल एवं सुखदायक हवा चलने लगी। सारी दिशाओं में प्रकाश छा गया और आकाश नीलम के समान चमक उठा।

श्रीकृष्ण आदि सब लोग ये अद्भुत बातें और दुर्योधन की यह पूजा देखकर लज्जित हुए। भीष्म, द्रोण, कर्ण और भूरिश्रवा को अधर्म पूर्वक मारा गया सुनकर सब लोग शोक से व्याकुल हो खेद प्रकट करने लगे। पाण्डवों को दीनचित्त एवं चिन्तामग्न देख मेघ और दुन्दुभिं के समान गम्भीर घोष करने वाले श्रीकृष्ण ने इस प्रकार कहा- यह दुर्योधन अत्यन्त शीघ्रतापूर्वक अस्त्र चलाने वाला था, अतः इसे कोई जीत नहीं सकता था और वे भीष्म, द्रोण आदि महारथी भी बड़े पराक्रमी थे। उन्हें धर्मानुकूल सरलता पूर्वक युद्ध के द्वारा आप लोग नहीं मार सकते थे। यह राजा दुर्योधन अथवा वे भीष्म आदि सभी महाधनुर्धर महारथी कभी धर्मयुद्ध के द्वारा नहीं मारे जा सकते थे। आप लोगों का हित चाहते हुए मैंने ही बार-बार माया का प्रयोग करके अनेक उपायों से युद्धस्थल में उन सबका वध किया।[1] यदि कदाचित्‌ युद्ध में मैं इस प्रकार कपटपूर्ण कार्य नहीं करता तो फिर तुम्हें विजय कैसे प्राप्त होती, राज्य कैसे हाथ में आता और धन कैसे मिल सकता था? भीष्म, द्रोण, कर्ण और भूरिश्रवा- ये चारों महामना इस भूतल पर अतिरथी के रूप में विख्यात थे। साक्षात्‌ लोकपाल में भी धर्मयुद्ध करके उन सबको नहीं मार सकते थे। यह गदाधारी धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन भी युद्ध से थकता नहीं था, इसे दण्डधारी काल भी धर्मानुकूल युद्ध के द्वारा नहीं मार सकता था। इस प्रकार जो यह शत्रु मारा गया है इसके लिये तुम्हें अपने मन में विचार नहीं करना चाहिये? बहुतेरे अधिक शक्तिशाली शत्रु नाना प्रकार के उपायों और कूटनीति के प्रयोगों द्वारा मारने के योग्य होते हैं। असुरों का विनाश करने वाले पूर्ववर्ती देवताओं ने इस मार्ग का आश्रय लिया है। श्रेष्ठ पुरुष जिस मार्ग से चले हैं, उसका सभी लोग अनुसरण करते हैं। अब हम लोगों का कार्य पूरा हो गया, अतः सायंकाल के समय विश्राम करने की इच्छा हो रही है। राजाओं! हम सब लोग घोड़े, हाथी एवं रथसहित विश्राम करें।[2]

कृष्ण आदि पाण्डवों द्वारा शंखध्वनि करना

भगवान श्रीकृष्ण का यह वचन सुनकर उस समय पाण्डवों सहित समस्त पांचाल अत्यन्त प्रसन्न हुऐ और सिंहसमुदाय के समान दहाड़ने लगे। पुरुषप्रवर! तदनन्तर भगवान श्रीकृष्ण तथा अन्य लोग दुर्योधन को मारा गया देख हर्ष में भरकर अपने-अपने शंख बजाने लगे। श्रीकृष्ण ने पांचजन्य शंख बजाया। प्रसन्नचित अर्जुन ने देवदत्त नामक श्रेष्ठ शंख की ध्वनि की। कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्त विजय तथा भयंकर कर्म करने वाले भीमसेन ने पौण्ड्र नामक महान शंख बजाया। नकुल और सहदेव ने क्रमशः सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाये। धृष्टद्युम्न ने जैत्र और सात्यकि ने नन्दिवर्धन नामक शंख की ध्वनि फैलायी। भरतश्रेष्ठ! उन महान शंखों के शब्द से सारा आकाश भर गया और धरती डोलने लगी। तत्पश्चात् पाण्डव सेनाओं में शंख, भेरी, पणव, आनक और गोमुख आदि बाजे बजाये जाने लगे। उन सबकी मिली जुली आवाज बड़ी भयानक जान पड़ती थी। उस समय अन्य बहुत-से मनुष्य स्तुति एवं मंगलमय वचनों द्वारा पाण्डवों का स्तवन करने लगे।[2]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 61 श्लोक 48-63
  2. 2.0 2.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 61 श्लोक 64-71

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