कृष्ण द्वारा धृतराष्ट्र को दुर्योधन आदि को कैद करने की सलाह

दुर्योधन की बात सुनकर श्रीकृष्ण क्रोधित होकर उसे फटकारते हुए कहते हैं कि- ‘दुर्योधन! तुझे रणभूमि में वीर शय्या प्राप्त होगी। तेरी यह इच्छा पूर्ण होगी। तू मंत्रियों सहित धैर्यपूर्वक रह। अब बहुत बड़ा नरसंहार होने वाला है।' दुर्योधन सभा में उपस्थित सभी का अपमान कर सभा छोड़कर चला जाता है। अब कृष्ण धृतराष्ट्र को दुर्योधन आदि को कैद करने की सलाह देते हैं, जिसका उल्लेख महाभारत उद्योग पर्व में भगवद्यान पर्व के अंतर्गत अध्याय 128 में निम्न प्रकार हुआ है[1]-

दुर्योधन के सभा से जाने पर भीष्म का कथन

वैशम्पायन जी कहते हैं-जनमेजय! इस प्रकार क्रोध में भरे हुए दुर्योधन को भाइयों सहित सभा से उठकर जाते देख शांतनुनन्दन भीष्म ने कहा- 'जो धर्म और अर्थ का परित्याग करके क्रोध का ही अनुसरण करता है, उसे शीघ्र ही विपत्ति में पड़ा देख उसके शत्रुगण हंसी उड़ाते हैं। राजा धृतराष्ट्र का यह दुरात्मा पुत्र दुर्योधन लक्ष्य सिद्धि के उपाय के विपरीत कार्य करने वाला तथा क्रोध और लोभ के वशीभूत रहने वाला है। इसे राजा होने का मिथ्या अभिमान है। जनार्दन! मैं समझता हूँ कि ये समस्त क्षत्रियगण काल से पके हुए फल कि भाँति मौत के मुँह में जाने वाले हैं। तभी तो ये सबके सब मोहवश अपने मंत्रियों के साथ दुर्योधन का अनुसरण करते हैं।[1]

कृष्ण द्वारा धृतराष्ट्र को दुर्योधन आदि को कैद करने की सलाह

भीष्म का यह कथन सुनकर महापराक्रमी दशार्हकुलनन्दन कमलनयन श्रीकृष्ण ने भीष्म और द्रोण आदि सब लोगों से इस प्रकार कहा- 'कुरुकुल के सभी बड़े-बूढ़े लोगों का यह बहुत बड़ा अन्याय है कि आप लोग इस मूर्ख दुर्योधन को राजा के पद पर बिठाकर अब इसका बलपूर्वक नियंत्रण नहीं कर रहे हैं। शत्रुओं का दमन करने वाले निष्पाप कौरवों! इस विषय में मैंने समयोचित कर्तव्य का निश्चय कर लिया है, जिसका पालन करने पर सबका भला होगा। वह सब मैं बता रहा हूँ, आप लोग सुनें। मैं तो हित की बात बताने जा रहा हूँ। उसका आप लोगों को भी प्रत्यक्ष अनुभव है। भरतवंशियों! यदि वह आपके अनुकूल होने के कारण ठीक जान पड़े तो आप उसे काम में ला सकते हैं।[1] बूढ़े भोजराज उग्रसेन का पुत्र कंस बड़ा दुराचारी एवं अजितेंद्रिय था। वह अपने पिता के जीते-जी उनका सारा ऐश्वर्य लेकर स्वयं राजा बन बैठा था, जिसका परिणाम यह हुआ कि वह मृत्यु के अधीन हो गया। समस्त भाई-बंधुओं ने उसका त्याग कर दिया था, अत: सजातीय बंधुओं के हित कि इच्छा से मैंने महान युद्ध में उस उग्रसेन पुत्र कंस को मार डाला। तदनंतर हम सब कुटुंबीजनों ने मिलकर भोजवंशी क्षत्रियों कि उन्नति करने वाले आहुक उग्रसेन को सत्कारपूर्वक पुन: राजा बना दिया। भरतनन्दन! कुल की रक्षा के लिए एक मात्र कंस का परित्याग करके अंधक और वृष्णि आदि कुलों के समस्त यादव परस्पर संगठित हो सुख से रहते और उत्तरोत्तर उन्नति कर रहे हैं।

राजन! इसके सिवा एक और उदाहरण लीजिये। एक समय प्रजापति ब्रह्मा जी ने जो बात कही थी, वही बता रहा हूँ। देवता और असुर युद्ध के लिए मोर्चे बांधकर खड़े थे। सबके अस्त्र-शस्त्र प्रहार के लिए ऊपर उठ गए थे। सारा संसार दो भागों में बंटकर विनाश के गर्त में गिरना चाहता था। भारत! उस अवस्था में सृष्टि की रचना करने वाले लोक-भावन भगवान ब्रह्मा जी ने स्पष्ट रूप से बता दिया कि इस युद्ध में दानवों सहित दैत्यों तथा असुरों की पराजय होगी। आदित्य, वसु तथा रुद्र आदि देवता विजयी होंगे। देवता, असुर, मनुष्य, गंधर्व, नाग तथा राक्षस- ये युद्ध में अत्यंत कुपित होकर एक दूसरे का वध करेंगे। यह भावी परिणाम जानकार परमेष्ठि प्रजापति ब्रह्मा ने धर्मराज से यह बात कही- ‘तुम इन दैत्यों और दानवों को बाँधकर वरुणदेव को सौंप दो। उनके ऐसा कहने पर धर्म ने ब्रह्मा जी की आज्ञा के अनुसार सम्पूर्ण दैत्यों और दानवों को बाँधकर वरुण को सौंप दिया। तब से जल के स्वामी वरुण उन्हें धर्मपाश एवं वारुण पाश में बाँधकर प्रतिदिन सावधान रहकर उन दानवों को समुद्र की सीमा में ही रखते हैं। भरतवंशियो! उसी प्रकार आप लोग दुर्योधन, कर्ण, सुबलपुत्र शकुनि तथा दु:शासन को बंदी बनाकर पांडवों के हाथ में दे दें। समस्त कुल की भलाई के लिए एक पुरुष को, एक गाँव के हित के लिए एक कुल को, जनपद के भले के लिए एक गाँव को और आत्मकल्याण के लिए समस्त भूमंडल को त्याग दें। राजन! आप दुर्योधन को कैद करके पांडवों से संधि कर लें। क्षत्रियशिरोमणे! ऐसा न हो कि आपके कारण समस्त क्षत्रियों का विनाश हो जाये।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 128 श्लोक 18-36
  2. महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 128 श्लोक 37-50

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प्रजागर पर्व
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उलूकदूतागमनपर्व
दुर्योधन का उलूक को दूत बनाकर पांडवों के पास भेजना | पांडव शिविर में उलूक द्वारा दुर्योधन का संदेश सुनाना | पांडवों की ओर से दुर्योधन को उसके संदेश का उत्तर | पंडवों का संदेश लेकर उलूक का लौटना | धृष्टद्युम्न द्वारा योद्धाओं की नियुक्ति

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अम्बोपाख्यानपर्व
भीष्म द्वारा काशीराज की कन्याओं का अपहरण | अम्बा का भीष्म से शाल्वराज के प्रति अनुराग प्रकट करना | अम्बा का शाल्व द्वारा परित्याग | अम्बा और शैखावत्य संवाद | होत्रवाहन तथा अकृतव्रण का आगमन और उनका अम्बा से वार्तालाप | अकृतव्रण और परशुराम का अम्बा से वार्तालाप | अम्बा और परशुराम का संवाद तथा अकृतव्रण की सलाह | परशुराम और भीष्म का रोषपूर्ण वार्तालाप | परशुराम और भीष्म का युद्ध हेतु कुरुक्षेत्र में उतरना | परशुराम के साथ भीष्म द्वारा युद्ध प्रारम्भ करना | परशुराम और भीष्म का घोर युद्ध | भीष्म और परशुराम का युद्ध | भीष्म को प्रस्वापनास्त्र की प्राप्ति | भीष्म तथा परशुराम द्वारा शक्ति और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग | भीष्म और परशुराम के युद्ध की समाप्ति | अम्बा की कठोर तपस्या | अम्बा को महादेव से वरप्राप्ति तथा उसका चिता में प्रवेश | अम्बा का द्रुपद का यहाँ जन्म और शिखण्डी नामकरण | शिखण्डी का विवाह और दशार्णराज का कोप | हिरण्यवर्मा के आक्रमण से द्रुपद का घबराना | द्रुपद द्वारा नगररक्षा की व्यवस्था और देवाराधन | शिखण्डिनी का वनगमन और स्थूणाकर्ण यक्ष से प्रार्थना | शिखण्डी को पुरुषत्व की प्राप्ति | स्थूणाकर्ण को कुबेर का शाप | भीष्म का शिखण्डी को न मारने का निश्चय | भीष्म आदि द्वारा अपनी-अपनी शक्ति का वर्णन | अर्जुन द्वारा अपने सहायकों और युधिष्ठिर की शक्ति का परिचय देना | कौरव सेना का रण के लिए प्रस्थान | पांडव सेना का युद्ध के लिए प्रस्थान

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