श्रीकृष्णांक
अद्भुतकर्मी श्रीकृष्ण
शोणस्त्रिग्धांहगुलिदलकुलं जातरागं परागै: भगवान श्रीकृष्ण लीलापुरुषोत्तम हैं, उनके पवित्र कर्मों का रहस्य कौन जान सकता है ? उन्होंने अपने जीवनमें ऐसे-ऐसे अद्भुत कर्म किये हैं जिन्हें पढ़कर आश्चर्य में डूब जाना पड़ता है, यहाँ ऐसे ही अद्भुत कर्मों में से कुछ का अत्यंत संक्षिप्त वर्णन किया जाता है। भाद्रकृष्णा 8 के दिन कंस के कैदखाने में आधी रात के समय भगवान प्रकट हुए। वसुदेव ने देखा ‘बड़ा ही अद्भुत बालक है, उसके विशाल नेत्र हैं, चार भुजाएं शंख चक्र, गदा-पद्य से शोभित हैं, वक्ष स्थल में श्रीवत्स का चिन्ह है, गले में कौस्तुभमणि चमक रही है, नव नील नीरद श्याम शरीर पर पीताम्बर शोभायमान है, सुन्दर काले घुंघराले बालों पर महामूल्यवान् वैडूर्यमणियों से जड़ा हुआ किरीट मुकुट है, कानों में मकराकृति कुण्डल है, अति उत्तम मेखला, अंगद, कलंक आदि आभूषणों से शरीर की प्रतिभा और भी बढ़ रही है। भगवान के अंगों की प्रभा से अन्धकारमय कारागृह परम प्रकाशमय हो गया, वसुदेव देवकी ने भगवान समझ्कर स्तुति की, भगवान ने प्रसन्न होकर कहा कि ‘स्वायंभुव मन्वन्तर में तुम्हारा नाम सुपता पृश्र्नि था, तुम दोनों ने दिव्य बारह हजार वर्ष तक मुझमें तन्मय होकर तप किया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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