श्रीकृष्णांक
श्रीकृष्ण
कर्मयोग, अभ्यासयोग और ज्ञानयोग इन तीनों योगों का सम्पादन करना, इनमें से किसी का त्याग नहीं किन्तु इन सभी को श्रीकृष्ण के प्रेम से प्रेरित होकर श्रीभगवान के निमित्त करना ही मुख्य साधन है जो आगे चलकर परा-भक्ति में परिणत हो जाती है। 1-कर्म जो करो, जो खाओ, जो हवन करो, जो दान करो, जो तपस्या करो, हे अर्जन ! उन सबको मुझे अर्पण करो। 2-योग योगियों में जो मुझमें अनन्यचित्त होकर श्रद्धापूर्वक मेरी सेवा में लगा रहता है वही सर्वश्रेष्ठ है। 3-ज्ञान अनेक जन्मों के बाद ज्ञानी मुझको पाता है (जबकि) वह समझता है कि ʻअखिल विश्व श्रीवासुदेव ही है।ʼ ऐसा महात्मा दुर्लभ है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |