श्रीकृष्णांक
साक्षात परब्रह्म का आविर्भाव
ʻपरितो वारयन्ति तेपरिवारा:ʼʻव्यूहते परितस्तिष्ठत्यसौ व्यूह:ʼ इसको यों समझिये— एकदम जाज्वल्यमान अग्रिगोलक किंवा हीरा आदि मणि अपने किरणमण्डल को अपने चारों तरफ निरूपण श्रीभागवत के प्रथम स्कन्ध में इस तरह है— नमो भगवते तस्मै वासुदेवाय धीमहि। वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरूद्ध—इन चारों व्यूहों के कार्य भी भिन्न-भिन्न हैं। मुक्तिदान-कार्य श्रीवासुदेव का है। असुरहनन यह संकर्षण-व्यूह का कार्य है। पुत्रस्य से उत्पन्न होता प्रद्युम्न का कार्य है और धर्मरक्षा अनिरूद्ध भगवान का कार्य है। यद्यपि चारों व्यूह भगवान ही हैं चारों के कार्य भी भगवान के ही कार्य हैं तथापि प्रकट सृष्टि की अवस्था में भगवान का यह नियम है कि भिन्न-भिन्न कार्य करने के लिये भिन्न-भिन्न ही स्वरूप धारण करते हैं। पूर्ण पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण का दो जगह अवतार हुआ है किये रहता है, वह किरण मण्डल उसका परिवार है, व्यूह है किंवा अंश है। इसी प्रकार श्रीकृष्ण भगवान के भी अन्तरंश हैं, जो व्यूह कहे गये हैं। वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरूद्ध ये चार व्यूह हैं। चतुव्यूह गायत्री का श्रीवसुदेव-देवकी के यहाँ और श्रीनन्द-यशोदा के यहाँ। दोनों जगह श्रीकृष्ण स्वरूप व्यूह सहित ही है। कहीं व्यूह का कार्य से प्राकट्य है और कहीं स्वरूप से प्राकट्य है। श्रीनन्द-यशोदा के यहाँ तीन व्यूह कार्य से प्रकट हैं। श्रीवसुदेव-देवकी के यहाँ चारों व्यूह स्वरूप से प्रकट हुए हैं। अर्थात व्रज में भगवान ने अपने व्यूहों का स्वरूप छिपाकर रखा है किन्तु व्यूहों का कार्य किया है और मथुरा में भगवान ने अपने व्यूहों का स्वरूप प्रकट किया है और कार्य भी किया है। अतएव भगवान ने वसुदेवजी के यहाँ अपने चतुर्भुजस्वरूप का दर्शन कराया है और श्रीनन्द के यहाँ द्विभुजस्वरूप में दर्शन किये हैं। श्रीदेवकी की कुक्षि से श्रीकृष्ण ने प्रद्युम्न-व्यूह द्वारा जन्म ग्रहण किया है। वंशस्थापन कार्य प्रद्युम्न-व्यूह का है। मथुरा में रहकर भगवान ने मुक्तिदान, असुरहनन, धर्मस्थापन और वंशस्थापन व्यूह कार्य किये हैं। यह बात सुप्रसिद्ध है। श्रीयशोदा के यहाँ (कुक्षि से नहीं) श्रीकृष्ण का अक्षर ब्रह्म के (वासुदेव के) द्वारा आविर्भाव हुआ है। ब्रज में पूर्ण पुरुषोत्तम का व्यूहसहित प्राकट्य है किन्तु कार्यत: अर्थात असुरहनन, मुक्तिदान-प्रभृति कार्य तो किये हैं, किन्तु स्वरूप से व्यूह प्राकट्य वहाँ नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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