श्रीकृष्णांक
साक्षात परब्रह्म का आविर्भाव
श्रीकृष्ण का स्वरूप केवल आनन्द है— आनन्दमय है और सर्वभवन समर्थ है, इसलिये भगवान ही भक्तों को लीलानुभव कराने के लिये और असुरों को दुर्भाव कराने के लिये अपनी मायाके के द्वारा अपने आनन्दस्वरूप को देह, इन्द्रिय, मन और तर्द्धमरूप से प्रतिभास कराते हैं। वास्तव में श्रीकृष्ण के स्वरूप में प्राकृत देहेन्द्रियादि हैं ही नहीं। यदि श्रीकृष्ण में प्राकृत देहेन्द्रियादि होते तो जैसे प्राकृत पुरुष में आसक्ति करने वाले की मुक्ति नहीं होती, प्रत्युत अध:पात होता है इसी तरह श्रीकृष्ण भजन करने वाले की भी दशा होती। यह बात तो किसी शास्त्र, से किसी के अनुभव से और किसी दृषृान्त से भी नहीं प्राप्त होती। इसलिये श्रीकृष्ण के स्वरूप में प्राकृत या लौकिक भाव होना मायिक कार्य—आसुर स्वभाव ही है। बच्चों को चाँदी या सोने के घोडे़ में जो घोड़े का आकार प्रतिभासित हो रहा है वह सत्य है, असत्य नहीं; किन्तु जो उसमें हाड़-चाम वाले सच्चे घोडे़ का भान होता है वह असत्य है। इसी प्रकार श्रीकृष्ण भगवान के आनन्द स्वरूप में जो देहेन्द्रियादि के होने का आभास हो रहा है वह तो असत्य नहीं है, सत्य है, क्योंकि भक्तों को लीलानुभवपूर्वक स्वरूपासक्ति कराने के लिये तथा आसुरों को प्राकृत्व भान कराकर पृथक् भाव कराने के लिये वह आभास अपेक्षित है, अतएव स्वयं भगवान ही ऐसा दिखा रहे हैं, किन्तु आभास के भुलावे में आकर उसे प्राकृत या लौकिक समझ बैठना, बस यह प्राकृतत्व भान ही असत्य है। इसलीये भगवतगीता के ब्रह्मलक्षण में कहा है कि ʻसर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम्ʼ अर्थात भगवान के स्वरूप में सर्व देहेन्द्रियान: करण और तद्धार्मों का आभास होता रहता है किन्तु वास्तव में वह प्राकृत देहेन्द्रियान्त: करण तद्धर्मों रहित है। श्रीकृष्णभगवान साक्षात परब्रह्म हैं। परब्रह्म का साक्षात आविर्भाव है। हम हम श्रुति, गीता और भागवत से सिद्ध कर चुके हैं। श्रीकृष्ण भगवान परब्रह्म हैं। इसलिये अपने सर्वशक्ति आविर्भाव के समय, अनधिकारियों को अपने स्वरूप और लीलओं का अनुभव न होना चाहिये और अधिकारियों को स्वरूप एवं लीलाओं का अनुभव होना चाहिये। इन दोनों प्रयोजनों की सिद्धि होने के लिये तथा असुरों की मुक्ति न होने पावे और अनुग्रहीत भक्तों को स्वरूप-सम्बन्ध-मात्र से साधन- निरपेक्ष- मुक्ति मिल जाय, इस प्रयोजन की सिद्धि के लिये भी आप अपनी द्विविध माया को साथ ही लेकर प्रकट हुए हैं इसलिये ही गीता में कहा है कि ʻआत्ममायया (सह) संभवामिʼ मैं अपनी माया को साथ लेकर प्रकट होता हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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