श्रीकृष्णांक
साक्षात परब्रह्म का आविर्भाव
इन तीनों श्लोकों में एक भगवान के अवतार की ही बात (जो कि लोक में प्रसिद्ध है) नहीं कही गयी है, किन्तु तीनों में अलग-अलग बातें कही हैं। हम पूर्व में कह चुके हैं कि परब्रह्म भगवान काʻ अवतरणम्- वैकुण्ठादत्रागमनम्ʼ (वैकुण्ठ से लोक में प्रकट होना) तीन तरह से होता है- पहला पूर्णाविर्भाव, दूसरा अंशावतार और तीसरा आवेशावतार। यदि तीनों श्लोकों में भगवान को एक अवतार की ही बात कहनी होती तो तीन श्लोकों के कहने की आवश्यकता ही नहीं थी। साधु-रक्षा, असुर दमन और धर्म-रक्षा- ये भगवदवतार के तीन कार्य लोक में प्रसिद्ध हैं सो तो ʻपरित्राणाय....................ʼ इस आठवें श्लोक में आ रही चुके थे, फिर दो श्लोक और क्यों कहे ? यह प्रश्न रह ही जाता है। इसलिये कहना पड़ता है कि श्रीमभागवत में अवतारों के विषय में यह कहकर जो निर्णय किया है कि वही निर्णय यहाँ भी किया गया है। गीता सूत्र है तो श्रीभागवत उसी का भाष्य है, 24 अवतार हैं तो श्रीकृष्ण परब्रह्म का पूर्ण आविर्भाव है। ʻअजोऽपि सन्ʼ इस पहले श्लोक में परात्पर पूर्ण पुरुषोत्तम के साक्षात आविर्भाव का निरूपण है। दूसरे श्लोक में आचार्यावतार का निरूपण है और तीसरे में पुरुष के अंशावतारों का वर्णन है और इसी ʻअजोऽपि सन्ʼ श्लोक में प्राकृत्व शंका को दूर भी किया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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