श्रीकृष्णांक
साक्षात परब्रह्म का आविर्भाव
यहाँ यह प्रश्न पुन: हो सकता है कि तो फिर श्रीकृष्ण का स्वरूप और उनके आकार प्राकृत क्यों मालूम होते हैं। उनके इन्द्रियों के कार्य स्नान-भोजनादि भी प्राकृत ही मालूम पड़ते हैं, यह क्यों ? इसका उत्तर तो स्वयं श्रीकृष्ण ने ही श्रीगीता में दे दिया है। ʻअज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मह्यन्ति:ʼʻनाहं प्रकाश: सर्वस्य योगमायासमावृत।ʼ ʻमूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम्।ʼ ʻअवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्।ʼʻपरं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम्।ʼ अर्थात ʻमूर्ख लोगों का अज्ञान से ढका हुआ रहता है, इसलिये ऐसे लोग मेरे स्वरूप और लीलाओं के विषय में बहक जाते हैं।ʼ ʻमैं सारे जगत की दृष्टि में प्रकट नहीं होता हूँ क्योंकि अपनी अधिदैविकी माया से ढका हुआ प्रकट होता हूँ। इसीलिये यह मूर्ख लोग मेरे अव्यय स्वरूप को नहीं जान पाते।ʼ ʻएक ओर तो यह मूर्ख लोग मेरे सर्वैश्रवर्य सम्पन्न परम उत्कृष्ट महात्म्य को नहीं जानते दूसरी तरफ मुझे मनुष्य-सरीखे तनु को स्वीकार किये देखते हैं, इसलिये मुझे प्राकृत-लौकिक समझ लेते हैं और मेरा अपमान करते हैं। जैसे गोवर्धनपूर्वक के समय इन्द्र ने भूल से किया था।ʼ आवेश, अवतार और आविर्भाव, ये अद्यपि अवतरण रूप प्रवृत्ति-निमित्त के एक होने से तीनों लोक में एक ही (अवतार) नाम से प्रसिद्ध हैं तथापि तीनों में कुछ-कुछ विभेद है, जिसे हम पूर्व में कह चुके हैं। श्रीकृष्ण का अवतार रहते भी वास्तव में आविर्भाव है। श्रीकृष्ण साक्षात् परब्रह्म पुरुषोत्तम हैं, अतएव अवतारी हैं। और सब अवतार हैं और वे श्रीकृष्ण (श्रीपुरुषोत्तम)– के ही अवतार हैं। यही बात श्रीमद्भागवत के प्रथम स्कन्ध में परिभाषा रूप से कह दी है कि- ʻएते चांशकला: पुंस: कृष्णास्तु भगवान स्वयम्ʼ अर्थात अन्य सब अवतार अन्तर्यामी के अंश और कला हैं किन्तु श्रीकृष्ण तो स्वयं परब्रह्म भगवान् ही हैं। अर्थात श्रीकृष्ण तो श्रीपुरुषोत्तम का ही आविर्भाव है। भगवतगीता के चतुर्थ अध्याय में भगवान् के अवतार के विषय में तीन श्लोक हैं। जब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिव्यज्ञान कर्ममिश्र भक्तियोग का उपदेश देकर यह कहा कि ʻयह लोग पहले मै सूर्य (मनु) से भी कह चुका हूँ,ʼ तब अर्जुन को बड़ा आश्चर्य हुआ और वह बोला कि ʻमित्र ! सूर्य तो बड़ा पुराना है और आप तो अब हुए हो, मैं कैसे समझ लूँ कि आपने ही पहले यह योग सूर्य से कहा था?ʼ इसके उत्तर में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को आज्ञा की कि ʻअर्जुन ! हमारे-तुम्हारे बहुत जन्म हो गये हैं, उन सबको- मैं सर्वज्ञ हूँ, ईश्वर हूँ- इसलिये जानता हूँ पर तू अल्पज्ञ होने से नहीं जानता।ʼ यहाँ पर ही अपने अवतार के विषय में तीन श्लोक कहे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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