श्रीकृष्णांक
साक्षात परब्रह्म का आविर्भाव
साकार सच्चिदानन्द सर्वत: पाणिपादान्त वह पुरुषोत्तम- भगवान सर्वत्र विराजता है, व्यापक है तथापि मायारूप परदे से ढका हुआ रहता है। इस मायारूप आवरण से चार प्रकार के आवरण स्वीकृत होते हैं। यहाँ माया शब्द से भगवान की ʻसर्वभवन-सामर्थ्य ʼ का ग्रहण करना चाहिये— प्रमाणावरण, वस्तु-आवरण, जीवावरण और भगवदावरण। इन चारों आवरणों के दूर होने पर प्रभु का दर्शन होता है। बस, आवरण को हटाकर लोक के समक्ष हो जाना ही ईश्वर का उतरना या अवतार कहा जाता है। यही भगवत्वमर्ति में समझ रखना चाहिये। प्रमाण, ज्ञान के साधन को कहते हैं। चक्षु आदि इन्द्रिय, मन और वेदप्रभृति ज्ञान के साधन प्रमाण कहते हैं। इन पर यदि आवरण हो तो भगवान का दर्शन नहीं होता। वस्तु पर भी आवरण होता है। यहाँ वस्तु भगवान को समझना चाहिये किंवा मूत्तिप्रभृति को। जब तक वस्तु का आवरण नहीं हटाया जायगा तब तक सर्वत्र रहने पर भी भगवान के दर्शन नहीं हो सकते। जीवपर भी मायारूप आवरण रहता है। यहाँ माया शब्द से मोहिनी शक्ति लेना चाहिये, क्योंकि वह भगवान के चिदंश की शक्ति है, जो जीव को ढक देती है, इसलिये जीव भगवान का साक्षात्कार नहीं कर सकता। भगवान का भी आवरण है। भगवान का आवरण हे भगवदिच्छा। सब आवरण हट जायँ किन्तु भगवान स्वयं इच्छा ही न करें तो भगवान के दर्शन नहीं हो सकते। यह सब आवरण भिन्न-भिन्न समय पर भिन्न-भिन्न अधिकारी को भिन्न भिन्न रीति से होते हैं और भिन्न–भिन्न उपायों से दूर होते हैं। गीता के ʻअज्ञानेनावृतं ज्ञानम्ʼ ʻपरं भावमजानन्त:ʼ दिव्यं ददामि ते चक्षु:ʼ नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपनेʼ आदि वचनों का भी संक्षेप में यही तात्पर्य है। विचार (मीमांसा) और धर्म के द्वारा वेद और मनरूप प्रमाण का आवरण दूर होता है। भक्ति सहित तत्वात्मज्ञान के द्वारा जीव का आवरण दूर होता है। भगवन्साहात्म्यज्ञानपूर्वक भगवान में परम प्रेम से की हुई सेवा से भगवान का आवरण दूर होता है। अर्थात वैसी सेवा करने से भगवान को प्रसन्न होकर उसे दर्शन देने की इच्छा हो जाती है। यह एक मार्ग की रीति है, दूसरे मार्ग में भगवदिच्छा से ही सब आवरणों दूर हो जाते हैं। खास श्रीकृष्णावतार में क्रीड़ा करने की इच्छा ही सब आवरणों के दूर करने का साधन था। इससे यह सिद्ध हुआ कि सब आवरणों को हटाकर प्रभु का जो उतरना अर्थात लोक में दर्शन देना या उनके समक्ष आ जाना यही ʻअवतारʼ कहा जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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