श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण
भगवान गुरु को आर्त देखकर उनका पुत्र ला देने की प्रतिज्ञा की। महर्षि वेदव्यास कहते हैं कि जो जो काम प्राणिमात्र में कोई नहीं कर सकता था वह उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने कर दिखाया। सान्दीपनि मुनिक का पुत्र आ गया, जिसे देखकर सभी को विस्मय हुआ। कहने का मतलब यह है कि भगवान श्रीकृष्ण की सभी बातें अलौकिक हैं। उनकी लीलाएँ जन्म से ही आरम्भ हो जाती हैं। उनकी दिव्य शक्तियाँ तभी से अप्रतिहतरूप से अपना प्रसार दिखाती हैं। अघासुर, बकासुर आदि असुरों तथा ब्रह्मा, इन्द्र आदि सुरों के साथ उन्होंने बचपन से ही मोर्चा लिया था। उन्हें पढ़ने-लिखने या साखने की परतन्त्रता नही थी। यदि होती तो सान्दीपनि मुनि का पुत्र कैसे आता ? यह विद्या उन्होंने किससे सीखी थी ? यदि सान्दीपनिजी को यह विद्या आती होती तो वह स्वयं ही अब तक अपने पुत्र को क्यों न ले आये होते ? इसी से तो लोग राम को अंशावतार और कृष्ण को पूर्णावतार बताते हैं। इस साधारण- अत्यन्त साधारण शिक्षा के साथ अब इनके ज्ञान का अन्दाज़ लगाइये। ʻताण्डवʼ और ʻलास्यʼ ये दो प्रकार के प्राचीन नृत्य प्रसिद्ध है। श्रीकृष्ण ने एक तीसरी नृत्यकला की सृष्टि की, जो शिवनृत्य (ताण्डव) और पार्वती-नृत्य (लास्य) इन दोनों से विलक्षण तथा चमत्कारी था। जो व्यक्ति क्रोधोन्मत्त भीषण भुजंगम के फनों पर नाच सकता हो, उसकी शरीर-साधना, चरण लाघव ओर लोकोत्तर कला में किसे सन्देह हो सकता है ? संगीत में आज चार मत प्रसिद्ध हैं। 1, नारदमत संगीत 2, भरतमत संगीत 3, हनुमन्मत संगीत और 4, श्रीकृष्णमत संगीत— इनमें अन्तिम सबसे कठिन और सबसे अधिक चमत्कारक बताया जाता है। और देखिये, युद्ध की शिक्षा तो आपने सान्दीपनि मुनि के अखाड़े में पायी थी, परन्तु हजारों हाथियों का बल रखने वाले कंस और चाणूर का चूरन बनाने की विद्या कहाँ सीखी थी? इन प्रबल ओर कुशल पहलवानों को पछाड़ने के दाव-पेंच किसने सिखाये थे? कुबलयापीड़ का पुलाव पकाने की तरकीब किसने बतायी थी? ग्वालों ने या गोपियों ने? ये बेचारे तो इन सबके नाम से ही थर-थर काँपते थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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