श्रीकृष्णांक
मोक्ष-संन्यासिनी गोपियां
इस दशा में मुझ सदृश अभक्त जीव मोक्ष संन्यासिनी गोपांगनाओं के श्रीकृष्ण प्रेम का क्या वर्णन करे ? श्रीकृष्ण और गोपियों के सम्बन्ध में जो कुछ ऊँची से ऊँची स्थिति अनुभव में आती है, वही आगे चलकर बहुत नीची मालूम होने लगती है। श्रीकृष्ण और गोपिकाओं का प्रेम क्या था, इस बात को श्रीकृष्ण और उनकी प्रेयसी गोपियां ही जानती हैं। भगवान तो सबके मन की जानते हैं, परन्तु भगवान के मन के सारे गुप्त मनोरथ गोपियां ही जानती थीं, इस बात को स्वयं भगवान ने स्वीकार किया है– निजांगमपि या गोप्या ममेति समुपासते । श्रीभगवान कहते हैं, हे अर्जुन ! गोपियां अपने अंगों की सम्हाल इसीलिये करती हैं कि उनसे मेरी सेवा होती है, उन गोपियों को छोड़कर मेरा निगूढ प्रेमपात्र और कोई नहीं है। वे मेरी सहायिका हैं, गुरु हैं, शिष्या हैं, दासी हैं, बन्धु हैं, प्रेयसी हैं, कुछ भी कहो सभी हैं, मैं सच कहता हूँ कि गोपियां मेरी क्या नहीं हैं। हे पार्थ ! मेरा माहात्म्य, मेरी पूजा, मेरी श्रद्धा और मेरे मनोरथ को तत्व से केवल गोपियां ही जानती हैं और कोई नहीं जानता’।
ऐसे प्रेम प्रसंग की मेरे द्वारा चर्चा की जाने का हेतु केवल यही है कि इस बहाने भगवान श्रीकृष्ण उनकी मर्मकथा को जानने वाली उनकी छायास्वरूपा प्रात:स्मरणीया गोपियां तथा उनके पवित्र कुछ स्मृति होगी, जो जीव के लिये सब प्रकार से आत्यन्तिक परम सुख का कारण है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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