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मीराबाई ने यह साफ ही साबित कर बताया है कि गोपियों को प्रेम कैसा था। जब-जब धर्म में लोगों की श्रद्धा नहीं रह जाती, तब-तब धर्म में पुन: श्रद्धा स्थिर बनाने के लिये मुक्त पुरुष इस दुनिया में अवतार लेते हैं और अपने प्रत्यक्ष अनुभव और जीवन द्वारा लोगों में धर्म विषयक श्रद्धा उत्पन्न करते हैं। इसी प्रकार जब लोगों में गोपियों की शुद्ध भक्ति के विषय में अश्रद्धा पैदा हुई, तब गोपियों में से एक ने शायद राधाजी ने मीरा का अवतार लेकर प्रेम धर्म की संस्थापना की। यदि हम ईश्वर और भक्त के बीच के इस अनिर्वचनीय प्रेम सम्बन्ध को स्पष्ट कर सकें तो गोपी के प्रेम या विरहसूचक पदों के गाने में कोई बुराई नहीं देखता। मीरा का सा त्याग हमसे कभी नहीं हो सकता। जमाना खराब आया है, पर क्या इसीलिये हम मीराबाई को भूल जायँ ? श्रीकृष्ण के साथ केवल गोपियां का ही सम्बन्ध था, सो नहीं। यशोदा बाल-कृष्ण की पूजा करती थी। कुन्ती पार्थ सारथी को पूजती थी। सुभद्रा और द्रौपदी कृष्ण की बन्धुरूप में पूजा करती थीं। श्रीकृष्ण का सम्पूर्ण जीवन हमारी स्त्रियों के समक्ष रखना चाहिये।
श्रीकृष्ण कितने संयमी थे, कितने नीतिज्ञ थे, कितने धर्म-निष्ठ थे, यह सब साफ-साफ हमें स्त्रियों को बताना चाहिये और तभी गोपी-प्रेम का आदर्श उनके सामने रखना चाहिये। प्रेम और मोह में स्वर्ग और नरक सा जो भेद है, वह साफ तौर पर समझा देना चाहिये। रासलीला में गोपियों के मन में मलिन कल्पना आते ही श्रीकृष्ण असंख्यरूपधारी श्रीकृष्ण एकदम अदृश्य हो गये, गोपियों का मन शुद्ध हुआ, तभी वह पुन: प्रकट हुए, इस सुन्दर घटना का वर्णन पुराणों में मिलता है, हर एक को इसका रहस्य समझना चाहिये, यह रहस्य किसी भी मनुष्य से गोप्य रखने में हित नहीं है। आधे ज्ञान से उत्पन्न दोषों को दूर करने का उपाय सम्पूर्ण ज्ञान है, अज्ञान नहीं। हमें प्रेम को शुद्ध रास्ते पर ले जाना चाहिये, प्रेम दाबे दबता नहीं, परन्तु दबाने से विकृत हो जाता है। जन्माष्टमी के दिन हम सुदामा चरित्र गावें, श्रीकृष्ण ने गोपियों को जो उपदेश किया था वह गावें, उद्धव के द्वारा श्रीकृष्ण ने गोपियों को जो संदेश भेजा था, उसका गान करें, गीताजी का रहस्य समझें, रासक्रीड़ा करे, ‘गरबे’ गावें, और उपवास करके शुद्ध वृत्ति से इसकी तह में जो रहस्य है, उसे समझें।
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