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समुद्र की गडगडाती हुई लहरों के हास्योल्लास और शब्दमय नृत्य में तुम्हें सचेत करके अपनी आनन्द-क्रीड़ा की ओर तुम्हारा ध्यान आकर्षित करता हूँ, तुम चकित होकर आंखें गडाकर मेरी ओर देखते हो, यह जानने के लिये कि मैं यह सब क्या लीला कर रहा हूँ। हे मित्र ! मेरे लिये यही काफी है कि मैं संसार की क्षुद्र चिन्ताओं से तुम्हारा ध्यान हटाकर उसे अपनी लीला की छाया-स्मृति की ओर खींच लेता हूँ। यदि तुम एक बार मुझे अच्छी तरह से देख लो और पकड़ लो तो यह आंख-मिचौनी का कौतुक ही समाप्त हो जाय’। सखे ! मैंने तुम्हें बहुत कुछ बतला दिया, इससे अधिक बतलाने के लिये मुझे तुम्हारे सामने प्रत्यक्ष प्रकट हो जाना पड़ेगा, और ऐसा करने से खेल का मजा किरकिरा हो जायेगा। हे प्यारे, तुम मेरी लीला की गतिविधि को सुन चके हो। उसे याद करो और मुझे ढूँढो। तुम्हारी आंखों में पट्टी बँधी रहने से मेरे खेल में और भी मजा आ जायगा, क्योंकि मैं हर घड़ी तुम्हारे पास रहकर खेल जमाये रहूँगा’।
3. ‘हे प्यारे क्रीड़ा सहचर ! सच है, तुम बार-बार मुझे ध्यान दिलाकर विचार में लीन कर देते हो, पर बार-बार मैं भूलकर ठगा जाता हूँ। भगवन् ! तुम कृपा कर ऐसा बतला दो कि मैं तुमको बिना भूले ढूँढ लूँ और तुम्हारी लीला को ठीक तरह से समझ जाऊँ’। ‘मैं तुम्हारे भीतर-बाहर, हर जगह, छिपा हुआ लीला कर रहा हूँ, इसलिये मेरी लीला को देखना हो तो हर जगह देखो। जहाँ स्वार्थपरता है, वहीं अज्ञान, अत्याचार और दु:खों का राज्य है, और याद रखो, यह सब इसलिये है कि लोग मेरी लीला को भूल गये हैं। जहाँ मौका देखो, जाओ और मेरी लीला को गाकर लोगों में उत्साह और आनन्द भर दो। खेल से भागने वाले कायरों को फिर से राजी करके खेल में शामिल कर दो, इससे तुम मुझे जीत लोगे। फिर धीरे से परदा उठेगा और हम लोगों का एक-दूसरे के साथ जो निरन्तर खेल हुआ करता है, उसका दृश्य सामने आ जायगा। सबसे प्रेम करो और सबकी सेवा करो और इस प्रकार उन्हें और मुझे जीत लो, जिससे फिर आंखों पर पट्टी बांधकर नहीं, आंखें खोलकर खुला खेल हो’।
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