श्रीकृष्णांक
चीर-हरण का रहस्य
‘तीरे निक्षिप्य पूर्ववत्’ इस पद से स्पष्ट समझ में आ जाता है कि बालाएं इस प्रकार विवस्त्र स्नान करने का आचरण पहले से ही करती थीं अर्थात उनमें इस प्रकार की रूढि प्रचलित थी। ‘वयस्यैरावृतस्तत्र गत:’ इस पद के द्वारा भागवतकार का यह अभिप्राय है कि वहाँ श्रीकृष्ण अकेले ही नहीं, बल्कि बहुतेरे ग्वाल-बालों के साथ गये थे, इससे ये जाना जाता है कि कुमारावस्था में श्रीकृष्ण अपने समवयस्क बालक बालिकाओं के साथ खेला करते थे, इस प्रकार के निर्दोष खेल में भी साधारणत: बालिकाओं के वस्त्र कोई उठाकर नहीं ले जाता, परन्तु भगवान अन्तर्यामी थे, इससे वे व्रज-बालाओं की व्रतपूर्ति के लिये वस्त्रों को लेकर वृक्ष के ऊपर चढ गये। यहाँ स्पष्ट शब्दों में यह उपदेश वाक्य भगवान ने कहा है– यूयं विवस्त्रा यदपो धृतव्रता जिस देवी की आराधना की हो, अपराधी होने पर नमस्कारपूर्वक उसी की प्रार्थना करनी चाहिये और किसी भी देवता की पूजा के अन्त में न्यूनता की पूर्ति के लिये अच्युत भगवान को नमस्कार करना चाहिये। पूजादि कर्म के अन्त में– यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोहोमक्रियादिषु । ये शब्द कहकर नमस्कार करने की विधि है, इससे भी यह बात स्पष्ट है कि भगवान ने व्रज-बालाओं की भूल से उनके व्रत में पड़ने वाले विघ्न को दूर करने की सूचना की। गोप कन्याएं अपनी भूल समझ गयीं और उन्होंने इसी भाव से नमस्कार किया जो इस श्लोक से स्पष्ट हो जाता है– इत्यच्युतेनाभिहितं व्रजाबला प्रायश्चित करने से व्रतपूर्ति हुई अथवा नहीं, इसका उत्तर व्रज-बालाओं ने (अपने) अन्त:करण में चाहा था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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