श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण का प्रभाव
अयन्ते पुण्डरीकाक्ष दु:शासनकरोद्धृत: । हे पुण्डरीकाक्ष ! शत्रुओं के साथ सन्धि करते समय सब कामों में यह दु:शासन के हाथ से खींची हुई मेरी वेणी आपको याद रखनी चाहिये। दु:शासनभुजं श्यामं संच्छिन्नं पांशुगुण्ठितम् । यदि मैं दु:शासन की श्याम भुजा को काटकर धूलि में सनी हुई नहीं देखूँगी तो मेरे हृदय को कैसे शान्ति मिलेगी ? इत्युक्त्वा वाष्परुद्धेन कण्ठेनायतलोचना । शोकावरुद्ध कण्ठ से इस प्रकार विलाप करके विशालनेत्रा द्रौपदी, कांपती हुई गद्गद होकर उच्च स्वर से रोने लगी। द्रौपदी के वचन सुनकर भगवान दया करके कौरवों को नष्ट करने की घोर प्रतिज्ञा करते हुए कहते हैं– चलेद्धि हिमवान् शैलो मेदिनी शतधा फलेत् । भले ही हिमालय पर्वत विचलित हो जाये, पृथ्वी के सैकड़ों टुकडे़ हो जायँ, तारों के सहित स्वर्ग गिर पड़े, पर मेरे वचन व्यर्थ नहीं हो सकते।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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