श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण का प्रभाव
द्रौपदी उस समय अनेक विलाप करती हुई[1] भगवान से प्रार्थना करती है– सुता द्रुपदराजस्य वेदिमध्यात् समुत्थिता । हे कृष्ण ! यज्ञवेदी से उत्पन्न हुई राजा द्रुपद की पुत्री, धृष्टद्युम्न की बहिन, आपकी प्यारी सखी, आजमीढ़ कुल में ब्याही गयी महात्मा पाण्डु की पुत्रवधू, इन्द्र के समान तेजस्वी पांच पाण्डुपुत्रों की महारानी, उन पांच वीरों से उत्पन्न पांच महारथी पुत्र जो कि धर्म के नाते अभिमन्यु के समान ही आपको प्रिय हैं, उनकी माता ऐसी मैं पाण्डुपुत्रों के देखते हुए और हे केशव ! आपके जीवित रहते हुए केश पकड़कर सभा में लायी गयी और दु:खित की गयी थी। जीवत्सु पाण्डुपुत्रेषु पांचालेष्वथ वृष्णिषु । पाण्डुपुत्रों के, पांचालों के और वृष्णियों के जीवित रहते हुए भी पापियों की सभा में लायी जाकर, मैं दासी बना ली गयी थी। निरमर्षेष्वचेष्टेषु प्रेक्षमाणेषु पाण्डुषु । यह सब देखते हुए भी पाण्डव जब क्रोध रहित और निश्चेष्ट ही बने रहे तब ‘हे गोविन्द ! मेरी रक्षा करो’ ऐसा मैंने मन से चिन्तन किया था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 82 में
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |