श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण का प्रभाव
कोई यह पूछे कि फिर भागवत आदि पुराणों में वर्णित वैषयिक प्रसंगों का क्या अर्थ है। मेरी साधारण-बुद्धि के अनुसार तो इसका यही उत्तर है कि उन शब्दों का मतलब समझने की कुछ भी आवश्यकता नहीं है, इतिहास, स्मृति, पुराण आदि ग्रन्थों में जहाँ कहीं भी ईश्वर पर झूठ, कपट, व्यभिचार आदि दोषों का आरोप प्रतीत हो और मद्य, मांस आदि के सेवन तथा असत्य, दम्भ, व्यभिचार आदि दोषों का विधान मिले, उन पंक्तियों को छोड़कर ही शेष सदुपदेश को ग्रहण करना और तदनुसार आचरण करना चाहिये।
संसार परिवर्तनशील है। देश, काल, वस्तु आदि का प्रतिक्षण परिवर्तन होता रहता है। पुरानी घटनाओं में समय का बहुत व्यवधान पड़ जाने के कारण समय के परिवर्तन से शास्त्रों के वर्णन की सारी बातों का पूरा मतलब ठीक-ठीक समझ में नहीं आता। इसके सिवा दीर्घकाल तक देश पर विधर्मियों का आधिपत्य रहने के कारण हमारे शास्त्रों में धर्म के विपरीत झूठ, कपट, चोरी आदि कुभाव घुसेड़ दिये गये हों तो भी कोई आश्चर्य नहीं है। अतएव पुराणों की सभी बातों को अक्षरश: समझाने और उनकी पूर्वा पर पूरी श्रृंखला बैठाकर उन्हें मिथ्या या सत्य सिद्ध करने का दायित्व हम साधारण लोगों को अपने ऊपर नहीं लेना चाहिये। क्योंकि हम लोग सर्वज्ञ नहीं है। इसके सिवा भगवान संसार में अवतार ग्रहण करके जो लीला करते हैं उनमें कहीं शास्त्र की मर्यादा के विपरीत दोष का आभास दिखलायी दे तो इस विषय में मन में यही निश्चय रखना चाहिये कि भगवान में कोई दोष कभी हो नहीं सकता। भगवान और उनके कर्म सर्वथा दिव्य हैं। साथ ही पुराण इतिहास आदि को भी असत्य नहीं कहा जा सकता। न मे विदु: सुरगणा: प्रभवं न महर्षय: । मेरी उत्पत्ति को अर्थात विभूति सहित लीला से प्रकट होने को न देवता लोग जानते हैं और न महर्षिगण ही जानते हैं, क्योंकि मैं सब प्रकार से देवताओं और महर्षियों का भी आदि कारण हूँ। यद्यपि इतिहास पुराण आदि शास्त्रों के रचयिता ऋषि तत्व को जानने वाले सिद्ध महापुरुष और योगी थे, तथापि वे भी भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण की लीला और उनके प्रभाव को सम्पूर्ण रूप से वर्णन करने में असमर्थ थे। फिर भी उन महात्माओं ने कृपा परवश हो जो कुछ लिखा है सो सत्य ही है, अल्पबुद्धि होने के कारण हम लोग उनके भावों को ठीक-ठीक समझ नहीं सकते और अपनी अल्पज्ञता का दोष उन महात्माओं के मत्थे मढते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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