श्रीकृष्णांक
श्रीकृष्ण की होली
4-सामान्य रीति से परमात्मा की सर्गकरी शक्ति को ‘विक्षेप शक्ति’ कहते हैं और बन्धनकारी शक्ति को ‘आवरण शक्ति’ कहते हैं। परमात्मा ने जगत को जादू के चित्र की तरह हमारी दृष्टि के सामने खड़ा कर दिया है। इस चित्र का जादू अनन्त गुणा अधिक है, क्योंकि बिना भित्ति चित्र के यह चित्र खड़ा कर दिया है।[1] यह जगत रूपी उसकी विक्षेप शक्ति का परिणाम है। हमारे और परमात्मा के बीच में इस चित्र के आ जाने से उसका यथार्थ स्वरूप हमें नहीं दीख पड़ता, यही उसकी आवरण शक्ति का परिणाम है। हमारा काम सिर्फ आवरण को दूर करना है। विद्यारण्य मुनि भी ‘ईश्वर सृष्टि’ और ‘जीव सृष्टि’ ऐसे सृष्टि के दो भेद बतलाते हैं। वे कहते हैं कि ज्ञान से जीव सृष्टि का नाश हो सकता है, पर ईश्वर सृष्टि का नाश नहीं हो सकता है और उसे नष्ट करना भी आवश्यक नहीं है। इस जगत के तरह-तरह के पदार्थ नष्ट हो जायेंगे या न दीख पड़ेंगे, यह न समझना चाहिये। पदार्थ तो रहेंगे और दीख पड़ेंगे, किन्तु उन पदार्थों पर से ज्ञानी का मोह उठ जायेगा और फिर वे बन्धनकर्ता न रहेंगे। विषय का विष निकल जायगा, इतना ही बस है। परमात्मा श्रीकृष्ण का ब्रह्माण्डरूपी होलिकोत्सव होता रहे, इसमें कोई हानि नहीं, किन्तु उसमें जो रंग गुलाल उड़ाया जा रहा है, उससे मनुष्य अन्धा हो जाता है। इसलिये आँखों में से गुलाल को निकालकर अपनी दृष्टि को स्वच्छ बनाये रखना ही हमारा कर्तव्य है। यहाँ प्रश्न होता है कि परमात्मा में आवरण शक्ति का होना कैसे सम्भव है ? इसका विचार हम आगे चलकर करेंगे। पहले तो यह समझ लेना चाहिये कि इस आवरण शक्ति का निस्सन्देह हमें अनुभव होता है, जो लोग शांकर वेदान्त के इस ‘आवरण शक्ति’ शब्द का प्रयोग भी नहीं करते, वे भी किसी दूसरे शब्द से वही बात कहते हैं जो आवरण शक्ति से ध्वनित होती है। ईसाई लोग कहते हैं कि परमात्मा मनुष्य की परीक्षा के लिये जगत के अनेक विकार हेतु (Temptation) उपस्थित किये हैं, उनसे शुद्ध होकर ही मनुष्य परमात्मा के समीप पहुँचता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ निरुपादानसभारमभित्तावेव तंवते। जगच्चित्रं नमस्तस्मै कलाश्लाघ्याय शूलिने॥
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