श्रीकृष्णांक
श्रीमद्भागवत भगवान व्यासकृत है
भागवत का एक लक्षण यह है कि जिसका आरम्भ गायत्री-मंत्र से हो और जिसके अन्तर्गत हयग्रीव ब्रह्मविद्या और वृत्रासुर का वध वर्णित हो उसे भागवत कहते हैं, सो ये तीनों बातें इसमें मिल जाती हैं। कोई-कोई पद्मपुराण के ‘अम्बरीष शुकप्रोक्तं नित्यं भागवतं श्रृणु, पठस्व स्वमुखेनापि यदीच्छसि भवक्षयम्’, श्लोकान्तर्गत ‘शुकप्रोक्तं’ का अर्थ ‘शुकाय प्रोक्तम्’ शुक के लिये प्रोक्त– करके कहते हैं कि भागवत तो परीक्षित शुक संवादात्मक है, इसलिये यह बात उसके सम्बन्ध में नहीं घटित होती। पर ऐसा अर्थ करना ठीक नहीं है। ‘शुकप्रोक्तम्’ का वास्तविक अर्थ है – ‘शुकेन प्रोक्तम्’ यानी जिसे शुक ने कहा, जिसकी पुष्टि बृहन्नारदीय सूत्रान्तर्गत पुरुषात्तम माहात्म्य का ‘राज्ञा पृष्ठं शुकेनोक्तं श्रीमद्भागवतं परम्’ श्लोकांश भी करता है। श्रीमद्भागवत के स्थान में देवी भागवत की पूजा करने वाले मत्स्य पुराण के ‘लिखित्वा तच्च यो दद्याद्धेमसिंहसमन्वितम्, प्रौष्ठपद्यां पौर्णमास्यां स याति परमां गतिम्’ श्लोक को पेश करके कहते हैं कि इसमें भाद्रपद की पूर्णिमा को लिखित भागवत के साथ सोने के सिंह दान देने की बात कही गयी है, पर सिंह तो देवी का वाहन है। पूर्णिमा तिथि भी देवी की है। भगवत्याश्च दुर्गायाश्चरितं यत्र वर्त्तते । इस श्लोक को, जिसका आशय यह है कि ‘जिसमें भगवती-दुर्गा का चरित्र हो उसे भागवत कहा है न कि देवीपुराण’। शिवपुराणान्तर्गत बतलाकर कहा जाता है इस लक्षण में श्रीमद्भावगत नहीं, देवीभागवत ही आ सकती है। पर यह धारणा ठीक नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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