कुमार कार्तिकेय के अभिषेक की तैयारी

महाभारत शल्य पर्व में गदा पर्व के अंतर्गत 44वें अध्याय में संजय ने कुमार कार्तिकेय के अभिषेक के लिए की गई तैयारियों का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

कुमार कार्तिकेय के अभिषेक की तैयारियाँ

वैशम्पायन जी बोले- राजेन्द्र! शम, तपस्या और पराक्रम से युक्त वह कुमार अत्यन्त वेग से बढ़ने लगा। वह देखने में चन्द्रमा के समान प्रिय लगता था। उस दिव्य सुवर्णमय प्रदेश में सरकण्डों के समूह पर स्थित हुआ वह कान्तिमान बालक निरन्तर गन्धर्वों एवं मुनियों के मुख से अपनी स्तुति सुनता हुआ सो रहा था। तदनन्तर दिव्य वाद्य और नृत्य की कला जानने वाली सहस्रों सुन्दरी देवकन्याएं उस कुमार की स्तुति करती हुई उसके समीप नृत्य करने लगीं।[1] सरिताओं में श्रेष्ठ गंगा भी उस दिव्य बालक के पास आ बैठीं। पृथ्वी देवी ने उत्तम रूप धारण करके उसे अपने अंक में धारण किया। बृहस्पति जी ने वहाँ उस बालक के जातकर्म आदि संस्कार किये और चार स्वरूपों में अभिव्यक्त होने वाला वेद हाथ जोड़कर उसकी सेवा में उपस्थित हुआ। चारों चरणों से युक्त धनुर्वेद, संग्रह सहित शस्त्र-समूह तथा केवल साक्षात वाणी-ये सभी कुमार की सेवा में उपस्थित हुए। कुमार ने देखा की सैकड़ों भूतसंघों से घिरे हुए महापराक्रमी देवाधिदेव उमापति गिरिराजनन्दिनी उमा के साथ पास ही बैठे हुए हैं। उनके साथ आये हुए भूतसंघों के शरीर देखने में बड़े ही अदभुत, विकृत और विकराल थे। उनके आभूषण और ध्वज भी बड़े विकट थे। उनमें से किन्हीं के मुंह बाघ और सिंह के समान थे तो किन्हीं के रीछ, बिल्ली और मगर के समान। कितनों के मुख वन-बिलावों के तुल्य थे। कितने ही हाथी, ऊंट और उल्लू के समान मुख वाले थे। बहुत से गीधों और गीदड़ों के समान दिखायी देते थे। किन्हीं-किन्हीं के मुख क्रौन्च पक्षी, कबूतर और रंकु मृग के समान थे। बहुतेरे भूत जहाँ-तहाँ हिंसक जन्तु, साही, गोह, बकरी, भेड़ और गायों के समान शरीर धारण करते थे। कितने ही मेघों और पर्वतों के समान जान पड़ते थे। उन्होंने अपने हाथों में चक्र और गदा आदि आयुध ले रखे थे। कोई अंजन-पुन्ज के समान काले और कोई श्वेत गिरि के समान गौर कान्ति से सुशोभित होते थे।

प्रजानाथ! वहाँ सात मातृकाएं[2] आ गयी थीं। साध्य, विश्व, मरुद्गण, वसुगण, पितर, रुद्र, आदित्य, सिद्ध, भुजंग, दानव, पक्षी, पुत्र सहित स्वयम्भू भगवान ब्रह्मा, श्रीविष्णु तथा इन्द्र अपने नियमों से च्युत न होने वाले उस श्रेष्ठ कुमार को दखने के लिये पधारे थे। देवताओं और गन्धर्वों में श्रेष्ठ नारद आदि देवर्षि, बृहस्पति आदि सिद्ध, सम्पूर्ण जगत से श्रेष्ठ तथा देवताओं के भी देवता पितृ-गण, सम्पूर्ण यामगण और धामगण भी वहाँ आये थे। बालक होने पर भी बलशाली एवं महान योगबल से सम्पन्न कुमार त्रिशूल और पिनाक धारण करने वाले देवेश्वर भगवान शिव की ओर चले। उन्हें आते देख एक ही समय भगवान शंकर, गिरिराज नन्दिनी उमा, गंगा और अग्निदेव के मन में यह संकल्प उठा कि देखें यह बालक पिता-माता का गौरव प्रदान करने के लिये पहले किसके पास जाता है? क्या यह मेरे पास आयेगा? यह प्रश्न उन सब के मन में उठा। तब उन सबके अभिप्राय को लक्ष्य करके कुमार ने एक ही साथ योगबल का आश्रय ले अपने अनेक शरीर बना लिये। तदनन्तर प्रभावशाली भगवान स्कन्द क्षण भर में चार रूपों में प्रकट हो गये। पीछे जो उनकी मूर्तियां प्रकट हुईं, उनका नाम क्रमशः शाख, विशाख और नैगमेय हुआ। इस प्रकार अपने आपको चार स्वरूपों में प्रकट करके अदभुत दिखायी देने वाले प्रभावशाली भगवान स्कन्द जहाँ रुद्र थे, उधर ही गये। विशाख उस ओर चल दिये, जिस ओर गिरिराजनन्दिनी उमा देवी बैठी थीं। वायुमूर्ति भगवान शाख अग्नि के पास और अग्नितुल्य तेजस्वी नैगमेय गंगा जी के निकट गये।[3] उन चारों के रूप एक समान थे। उन सबके शरीर तेज से उद्भासित हो रहे थे। वे चारों कुमार उन चारों के पास एक साथ जा पहुँचे। वह एक अदभुत सा कार्य हुआ। वह महान आश्चर्यमय, अदभुत तथा रोमान्चकारी घटना देखकर देवताओं, दानवों तथा राक्षसों में महान हाहाकार मच गया।

तदनन्तर भगवान रुद्र, देवी पार्वती, अग्निदेव तथा गंगा जी- इन सबने एक साथ लोकनाथ ब्रह्मा जी को प्रणाम किया। राजन! नृपश्रेष्ठ! विधिपूर्वक प्रणाम करके वे सब कार्तिकेय का प्रिय करने की इच्छा से यह वचन बोले- ‘देवेश्वर! भगवन! आप हम लोगों का प्रिय करने के लिये इस बालक को यथायोग्य मन की इच्छा के अनुरूप कोई आधिपत्य प्रदान कीजिये’। तदनन्तर सर्वलोक पितामह बुद्धिमान भगवान ब्रह्मा ने मन ही मन चिन्तन किया कि ‘यह बालक कौन सा आधिपत्य ग्रहण करे’। महामति ब्रह्मा ने जगत के भिन्न-भिन्न पदार्थों के ऊपर देवता, गन्धर्व, राक्षस, यक्ष, भूत, नाग और पक्षियों का आधिपत्य पहले से ही निर्धारित कर रखा था। साथ ही वे कुमार को भी आधिपत्य करने में समर्थ मानते थे। भरतनन्दन! तदनन्तर देवगणों के मंगल सम्पादन में तत्पर हुए ब्रह्मा ने दो घड़ी तक चिन्तन करने के पश्चात् सब प्राणियों में श्रेष्ठ कार्तिकेय को सम्पूर्ण देवताओं का सेनापति पद प्रदान किया। जो सम्पूर्ण देव समूहों के राजा रूप में विख्यात थे, उन सबको सर्वभूत पितामह ब्रह्मा ने कुमार के अधीन रहने का आदेश दिया। तब ब्रह्मा आदि देवता अभिषेक के लिये कुमार को लेकर एक साथ गिरिराज हिमालय पर वहाँ से निकली हुई सरिताओं में श्रेष्ठ पुण्यसलिला सरस्वती देवी के तट पर गये, जो समंतपंचक तीर्थ में प्रवाहित होकर तीनों लोकों में विख्यात है। वहाँ वे सभी देवता आौर गन्धर्व पूर्ण मनोरथ हो सरस्वती के सर्वगुण सम्पन्न पावन तट पर विराजमान हुए।[4]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 44 श्लोक 1-19
  2. ब्राह्मी, माहेश्वरी, वैष्णवी, कौमारी, इन्द्राणी, वाराही तथा चामुण्डा- ये सात मातृकाएं हैं।
  3. महाभारत शल्य पर्व अध्याय 44 श्लोक 20-40
  4. महाभारत शल्य पर्व अध्याय 44 श्लोक 41-53

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