कुबरी कौ न्याऊ री जासौ गोविंद बोलै।
वे त्रैलोकनाथ चाहत है, काहे न एटी डोलै।।
जिनसौ कृपा करी नंदनंदन, क्यौ नहि करति कलोलै।
कारौ कुटिल कपट अति कान्हर, अतर ग्रन्थ न खोलै।।
हम बौरी बकवाद करति है, बृथा आरति यह जोलै।
दीपक देखि पतंग जरत प्यौ, मीन सुजल बिनु भोलै।।
प्रीति पुरातन पारि जिनहि सौ, नेहु कसौटी तोले।
‘सूर’ स्याम उपहास चल्यौ ब्रज, आप आपने टोले।।3645।।