कुण बाँचे पाती -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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कुण बांचै पाती, बिना प्रभु कुण बांचै पाती।
कागद ले ऊधो जी आयो, कहाँ रह्या साथी।
आवत जावत पाँव घिस्यारे ( बाला ), अँखियाँ भईं रातीं।
कागद ले राधा बाँचण बैठी, भर आई छाती।
नैण नीरज में अंब बहे रे ( बाला ), गंगा बहि जाती।
पाना ज्यूँ पीली पड़ी रे (बाला) अन्न[1] नहिं खाती।
हरि बिन जिबड़ो यूँ जलै रे (बाला), ज्यूँ दीपक सँग बाती।
म्हने भरोसो राम को रे ( बाला), डूबतिर्यो हाथी।
दास मीरां लाल गिरधर, सांकड़ारो साथी ।।186।।[2]




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. धान
  2. वांचै = पढ़े, पढ़ सुनावे। साथी = मित्र ( श्रीकृष्ण )। कागद = पत्रिका। रह्या = रह गया। आवत जावत = आते जाते। घिस्या। घिस गये। राती = लाल लाल। बांचण = पढ़ने। भर... छाती = हृदय उमड़ आया। नैण नीरण = कमल नेत्रों। अंब = पानी। गंगा = नदीसी। म्हने = मुझे। डूब तिर्यो हाथी = गजेन्द्र डूबता डूबता बच गया। सांकडांरो = संकट में भक्तों का। साथी = सहायक।

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