किते दिन हरि-सुमिरन बिनु खोए।
पर-निंदा रसना के रस करि, केतिक जनम बिगोए।
तेल लगाइ कियौ रुचि-मर्दन, बस्तर मलि-मलि धोए।
तिलक बनाइ चले स्वामी ह्वै, विषयिनि के मुख जोए।
काल बली तैं सब जग काँप्यौ, ब्रह्यादिक हूँ रोए।
सूर अधम की कहौ कौन गति, उदर भरे, परि सोए।।52।।