कान्ह प्यारौ नहिं पायौ री।
स्याम-स्याम यह कहति फिरति हैं, धुनि बृंदाबन छायौ री।।
गरब जानि पिय अंतर ह्वै रहे, सो मैं बृथा बढ़ायौ री।
अब बिनु देखे कल न परति छिनु, स्याम सुँदर गुन-रायौ री।।
मृग-मृगनि, द्रुम-बन, सारस, पिक, काहूँ नहीं बतायौ री।
सूरदास-प्रभु मिलहु कृपा करि, जुवतिनि टेर सुनायौ री।।1094।।