कान्ह धौ हम सौ कहा कह्यौ।
निकसे बचन सुनाइ सखी री, नाही परत रह्यौ।।
मैं मतिहीन मरम नहिं जान्यौ, भूली मथति दह्यौ।
कीजै कहा कहौ अब लै निधि, दूत दूरि निबह्यौ।।
सबै अजान भई तिहिं औसर, काहूँ रथ न गह्यौ।
'सूरदास' प्रभु वृथा लाज करि, दुसह वियोग लह्यौ।।3000।।