काननि सुनौं स्याम की मुरली, नैननि निरखौं रूप ललाम।
घ्राननि सूँघौं अंग-गंध सुचि, परसौं त्वचा अंग अभिराम॥
रसना चखौं प्रसाद मधुर अति, बानी नित्य करै गुन-गान।
मन में बस्यौ रहै नित मेरे आठौं जाम मधुर रस-खान॥
करत संग अनवरत अनूपम मन-इंद्रिय सब भए निहाल।
पाय मधुर-रस ब्रह्म-परस, रति बढ़त निरंतर निरवधि काल॥