कह ल्यायौ तजि प्रानजिवनधन।
राम कृष्न कहि मुरछि परी धर, जसुदा देखत ही पुर लोगन।।
विद्यमान हरि वचन स्त्रवन सुनि कैसै गए न प्रान छूटि तन।
सुनी न कथा राम दसरथ की, अही न लाज भई तेरै मन।।
मद हीन मति भयौ नद अति, होत कहा पछिताने छन छन।
‘सूर’ नद फिरि जाहु मधुपुरी, ल्यावहु सुत करि कोटि जतन घन।। 3139।।