कहत हे आगै जपिहैं राम -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग देवगंधार




कहत हे, आगै जपिहैं राम।
बीचहि भई और की औरै परयौ काल सौं काम।
गरभ-वास दस मास अधोमुख, तहँ न भयौ विस्‍त्राम।
बालापन खेलतहीं खोयौ, जोबन जोरत दाम।
अब तो जरा निपट नियरानी, करवौं न कलुवै काम।
सूरदास प्रभु कों बिसरायौ बिना लिऐं हरि-नाम ॥57॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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