- श्रीकृष्ण का कर्ण से पांडवपक्ष की निश्चित विजय का प्रतिपादन करने के बाद कर्ण कृष्ण से पांडवों की विजय और कौरवों की पराजय दर्शाने वाले लक्षणों का वर्णन करते है और कहते है कि इसमें संदेह नहीं कि कौरवों और पाण्डवों का यह बड़ा भयंकर युद्ध होगा जिसमें दुर्योधन के वश में रहने वाले जो राजा और राजकुमार हैं, वे रणभूमि में अस्त्र-शस्त्रों की आग से जलकर निश्चय ही यमलोक में जा पहुँचेंगे। श्रीकृष्ण इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस युद्ध में अवश्य ही पाडण्वों की विजय और कौरवों की हार होगी, जिसका उल्लेख महाभारत उद्योग पर्व में भगवद्यान पर्व के अंतर्गत 143वें अध्याय में हुआ है, जो इस प्रकार है-[1]
विषय सूची
कर्ण द्वारा कृष्ण से पांडवों की विजय और कौरवों की पराजय दर्शाने वाले लक्षणों का वर्णन
संजय कहते हैं- राजन! भगवान केशव का वह हितकर एवं कल्याणकारी वचन सुनकर कर्ण मधुसूदन श्रीकृष्ण के प्रति सम्मान का भाव प्रदर्शित करते हुए इस प्रकार बोला। महाबाहो! आप सब कुछ जानते हुए भी मुझे मोह में क्यों डालना चाहते हैं? यह जो इस भूतल का पूर्णरूप से विनाश उपस्थित हुआ है, उसमें मैं, शकुनि, दु:शासन तथा धृतराष्ट्र पुत्र राजा दुर्योधन निमित्त मात्र हुए हैं। ‘श्रीकृष्ण! इसमें संदेह नहीं कि कौरवों और पाण्डवों का यह बड़ा भयंकर युद्ध उपस्थित हुआ है, जो रक्त की कीच मचा देने वाला है। दुर्योधन के वश में रहने वाले जो राजा और राजकुमार हैं, वे रणभूमि में अस्त्र-शस्त्रों की आग से जलकर निश्चय ही यमलोक में जा पहुँचेंगे। मधुसूदन! मुझे बहुत से भयंकर स्वप्न दिखायी देते हैं। घोर अपशकुन तथा अत्यन्त दारुण उत्पात दृष्टिगोचर होते हैं। वृष्णिनन्दन! वे रोंगटे खड़े कर देने वाले विविध उत्पात मानो दुर्योधन की पराजय और युधिष्ठिर की विजय घोषित करते हैं। महातेजस्वी एवं तीक्ष्ण ग्रह शनैश्रर प्रजापति सम्बन्धी रोहिणी नक्षत्र को पीड़ित करते हुए जगत के प्राणियों को अधिक से अधिक पीड़ा दे रहे हैं। मधुसूदन! मंगल ग्रह ज्येष्ठा के निकट से वक्र गति का आश्रय ले अनुराधा नक्षत्र पर आना चाहते हैं। जो राज्यस्थ राजा के मित्रमण्डल का विनाश-सा सूचित कर रहें हैं। वृष्णिनन्दन श्रीकृष्ण! निश्चय ही कौरवों पर महान भय उपस्थित हुआ हैं। विशेषत: ‘महापात’ नामक ग्रह चित्रा को पीड़ा दे रहा है जो राजाओं के विनाश का सूचक है। चन्द्रमा का कलंक [2] मिट-सा गया है, राहु सूर्य के समीप जा रहा है। आकाश से ये उल्काएँ गिर रही हैं, वज्रपात के से शब्द हो रहे हैं और धरती डोलती सी जान पड़ती है। ‘माधव! गजराज परस्पर टकराते और विकृत शब्द करते हैं। घोड़े नेत्रों से आंसू बहा रहे हैं। वे घास और पानी भी प्रसन्नतापूर्वक नहीं ग्रहण करते हैं। महाबाहो! कहते हैं, इन निर्मितों[3] के प्रकट होने पर प्राणियों के विनाश करने वाले दारुण भय की उपस्थिति होती है। केशव! हाथी, घोड़े तथा मनुष्य भोजन तो थोड़ा ही करते हैं परंतु उनके पेट से मल अधिक निकलता देखा जाता है।
मधुसूदन! दुर्योधन की समस्त सेनाओं में ये बातें पायी जाती है। मनीषी पुरुष इन्हें पराजय का लक्षण कहते हैं। श्रीकृष्ण! पाण्डवों के वाहन प्रसन्न बताये जाते हैं और मृग उनके दाहिने से जाते देखे जाते हैं यह लक्षण उनकी विजय का सूचक है। केशव! सभी मृग दुर्योधन के बाँयें से निकलते हैं और उसे प्राय: ऐसी वाणी सुनायी देती हैं, जिसके बोलने वाले का शरीर नही दिखायी देता। यह उसकी पराजय का चिह्र है। ‘मोर’ शुभ शकुन सूचित करने वाले मुर्गे, हंस, सारस, चातक तथा चकोरों के समुदाय पाण्डवों का अनुसरण करते हैं। इसी प्रकार गीध, कक, बक, श्येन (बाज), राक्षस, भेड़िये तथा मक्खियों के समूह कौरवों के पीछे दौड़ते हैं। दुर्योधन की सेनाओं में बजाने पर भी भेरियों के शब्द प्रकट नही होते हैं और पाण्डवों के डंके बिना बजाये ही बज उठते हैं। दुर्योधन की सेनाओं मे कुएँ आदि जलाशय गाय-बैलों के समान शब्द करते हैं। यह उसकी पराजय का लक्षण है। माधव! बादल आकाश से मांस और रक्त की वर्षा करते हैं। अन्तरिक्ष में चहारदिवारी, खाई, वप्र और सुन्दर फाटकों सहित सूर्ययुक्त गन्धर्वनगर प्रकट दिखायी देता है। वहाँ सूर्य को चारों ओर से घेरकर एक काला परिघ प्रकट होता है।[1] सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों संध्याओं के समय एक गीदड़ी महान भय की सूचना देती हुई भयंकर आवाज में रोती है। यह भी कौरवों की पराजय का लक्षण है। मधुसूदन! एक पाँख, एक आँख और एक पैर वाले पक्षी अत्यन्त भयंकर शब्द करते हैं। यह भी कौरव-पक्ष की पराजय का ही लक्षण है। संध्याकाल में काली ग्रीवा और लाल पैर वाले भयानक पक्षी सामने आ जाते हैं, वह भी पराजय का ही चिह्न है। मधुसूदन! दुर्योधन पहले ब्राह्मणों से द्वेष करता है फिर गुरुजनों से तथा अपने प्रति भक्ति रखने वाले भृत्यों से भी द्रोह करने लगता है, यह उसकी पराजय का ही लक्षण है। श्रीकृष्ण! पूर्व दिशा लाल, दक्षिण दिशा शस्त्रों के समान रंग वाली (काली), पश्चिम दिशा मिटटी के कच्चे बर्तनों की भाँति मटमैली तथा उत्तर दिशा शंख के समान श्वेत दिखायी देती है। इस प्रकार ये दिशाओं के पृथक-पृथक वर्ण बताये गये हैं। माधव! दुर्योधन को इन उत्पातों का दर्शन तो होता ही है। उसके लिये सारी दिशाएँ भी प्रज्वलित-सी होकर महान भय की सूचना दे रही हैं।[4]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 143 श्लोक 1-23
- ↑ काला चिह्र
- ↑ उत्पातसूचक लक्षणों
- ↑ महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 143 श्लोक 24-44
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| कृष्ण को भीमसेन का उत्तर
| कृष्ण द्वारा भीमसेन को आश्वासन देना
| अर्जुन का कथन
| कृष्ण का अर्जुन को उत्तर देना
| नकुल का निवेदन
| सहदेव तथा सात्यकि की युद्ध हेतु सम्मति
| द्रौपदी का कृष्ण को अपना दु:ख सुनाना
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| कृष्ण का हस्तिनापुर को प्रस्थान
| युधिष्ठिर का कुन्ती एवं कौरवों के लिए संदेश
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| धृतराष्ट्र का कृष्ण की अगवानी करके उन्हें भेंट देने का विचार
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| दुर्योधन की कुमन्त्रणा से भीष्म का कुपित होना
| हस्तिनापुर में कृष्ण का स्वागत
| धृतराष्ट्र एवं विदुर के यहाँ कृष्ण का आतिथ्य
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| धृतराष्ट्र और विदुर का दुर्योधन को पुन: समझाना
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| कुंती का पांडवों के लिये संदेश
| कुंती द्वारा विदुलोपाख्यान का प्रारम्भ
| विदुला का पुत्र को युद्ध हेतु उत्साहित करना
| विदुला और उसके पुत्र का संवाद
| विदुला द्वारा कार्य में सफलता प्राप्ति और शत्रुवशीकरण उपायों का निर्देश
| विदुला के उपदेश से उसके पुत्र का युद्ध हेतु उद्यत होना
| कुंती का संदेश तथा कृष्ण का उनसे विदा लेना
| भीष्म और द्रोण का दुर्योधन को समझाना
| द्रोणाचार्य का दुर्योधन को पुन: संधि के लिए समझाना
| कृष्ण का कर्ण को पांडवपक्ष में आने के लिए समझाना
| कर्ण का दुर्योधन के पक्ष में रहने का निश्चित विचार
| कर्ण द्वारा कृष्ण से समरयज्ञ के रूपक का वर्णन
| कृष्ण का कर्ण से पांडवपक्ष की निश्चित विजय का प्रतिपादन
| कर्ण द्वारा कृष्ण से पांडवों की विजय और कौरवों की पराजय दर्शाने वाले लक्षणों का वर्णन
| कर्ण द्वारा कृष्ण से अपने स्वप्न का वर्णन
| कुंती का कर्ण के पास जाना
| कुंती का कर्ण से पांडवपक्ष में मिल जाने का अनुरोध
| कर्ण की अर्जुन को छोड़कर शेष पांडवों को न मारने की प्रतिज्ञा
| कृष्ण का युधिष्ठिर से कौरवसभा में व्यक्त किये भीष्म के वचन सुनाना
| कृष्ण द्वारा द्रोणाचार्य, विदुर तथा गांधारी के महत्त्वपूर्ण वचनों का वर्णन
| दुर्योधन के प्रति धृतराष्ट्र के युक्तिसंगत वचनों का वर्णन
| कृष्ण का कौरवों के प्रति दण्ड के प्रयोग पर जोर देना
सैन्यनिर्याणपर्व
पांडवपक्ष के सेनापति का चुनाव
| पांडव सेना का कुरुक्षेत्र में प्रवेश
| कुरुक्षेत्र में पांडव सेना का पड़ाव तथा शिविर निर्माण
| दुर्योधन द्वारा सेना को सुसज्जित होने और शिविर निर्माण का आदेश
| कृष्ण का युधिष्ठिर से युद्ध को ही कर्तव्य बताना
| युधिष्ठिर का संताप और अर्जुन द्वारा कृष्ण के वचनों का समर्थन
| दुर्योधन द्वारा सेनाओं का विभाजन और सेनापतियों का अभिषेक
| दुर्योधन द्वारा भीष्म का सेनापति पद पर अभिषेक
| युधिष्ठिर द्वारा अपने सेनापतियों का अभिषेक
| बलराम का पांडव शिविर में आगमन और तीर्थयात्रा के लिए प्रस्थान
| रुक्मी का सहायता हेतु पांडवों और कौरवों के पास आगमन
| धृतराष्ट्र और संजय का संवाद
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दुर्योधन का उलूक को दूत बनाकर पांडवों के पास भेजना
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| पांडवों की ओर से दुर्योधन को उसके संदेश का उत्तर
| पंडवों का संदेश लेकर उलूक का लौटना
| धृष्टद्युम्न द्वारा योद्धाओं की नियुक्ति
रथातिरथसंख्यानपर्व
भीष्म द्वारा कौरव पक्ष के रथियों और अतिरथियों का परिचय
| कौरव पक्ष के रथियों का परिचय
| कौरव पक्ष के रथी, महारथी और अतिरथियों का वर्णन
| कर्ण और भीष्म का रोषपूर्वक संवाद
| भीष्म द्वारा पांडव पक्ष के रथी और उनकी महिमा का वर्णन
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| पांडव पक्ष के रथी, महारथी एवं अतिरथी आदि का वर्णन
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अम्बोपाख्यानपर्व
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| अम्बा और शैखावत्य संवाद
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| अकृतव्रण और परशुराम का अम्बा से वार्तालाप
| अम्बा और परशुराम का संवाद तथा अकृतव्रण की सलाह
| परशुराम और भीष्म का रोषपूर्ण वार्तालाप
| परशुराम और भीष्म का युद्ध हेतु कुरुक्षेत्र में उतरना
| परशुराम के साथ भीष्म द्वारा युद्ध प्रारम्भ करना
| परशुराम और भीष्म का घोर युद्ध
| भीष्म और परशुराम का युद्ध
| भीष्म को प्रस्वापनास्त्र की प्राप्ति
| भीष्म तथा परशुराम द्वारा शक्ति और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग
| भीष्म और परशुराम के युद्ध की समाप्ति
| अम्बा की कठोर तपस्या
| अम्बा को महादेव से वरप्राप्ति तथा उसका चिता में प्रवेश
| अम्बा का द्रुपद का यहाँ जन्म और शिखण्डी नामकरण
| शिखण्डी का विवाह और दशार्णराज का कोप
| हिरण्यवर्मा के आक्रमण से द्रुपद का घबराना
| द्रुपद द्वारा नगररक्षा की व्यवस्था और देवाराधन
| शिखण्डिनी का वनगमन और स्थूणाकर्ण यक्ष से प्रार्थना
| शिखण्डी को पुरुषत्व की प्राप्ति
| स्थूणाकर्ण को कुबेर का शाप
| भीष्म का शिखण्डी को न मारने का निश्चय
| भीष्म आदि द्वारा अपनी-अपनी शक्ति का वर्णन
| अर्जुन द्वारा अपने सहायकों और युधिष्ठिर की शक्ति का परिचय देना
| कौरव सेना का रण के लिए प्रस्थान
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