- महाभारत उद्योग पर्व में यानसंधि पर्व के अंतर्गत 62वें अध्याय में 'कर्ण की आत्मप्रशंसा एवं भीष्म द्वारा उस पर आक्षेप' का वर्णन है, जो इस प्रकार है[1]-
विषय सूची
कर्ण द्वारा अपनी प्रशंसा करना
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! विचित्रवीर्य-नंदन धृतराष्ट्र को पहले की ही भाँति कुंतीकुमार अर्जुन के विषय में बारंबार प्रश्न करते देख उनकी कोई परवा न करके कर्ण ने कौरव-सभा में दुर्योधन को हर्षित करते हुए कहा- ‘राजन! मैंने पूर्वकाल में झूठे ही अपने को ब्राह्मण बताकर परशुराम जी से जब ब्रह्मास्त्र की शिक्षा प्राप्त कर ली, तब उन्होंने मेरा यथार्थ परिचय जानकर मुझसे इस प्रकार कहा- ‘कर्ण-अंत समय आने पर तुम्हें इस ब्रह्मास्त्र का स्मरण नहीं रहेगा। ‘यद्यपि मेरे द्वारा उन महर्षि का महान अपराध हुआ था, तथापि उन गुरुदेव ने जो मुझे शाप नहीं दिया, यह उनका मेरे ऊपर बहुत बड़ा अनुग्रह है। अन्यथा वे प्रचण्ड तेजस्वी महामुनि समुद्र सहित सारी पृथ्वी को भी दग्ध कर सकते हैं। ‘मैंने अपने पुरुषार्थ तथा सेवा-शुश्रूषा से उनके मन को प्रसन्न कर लिया था। वह ब्रह्मास्त्र अब भी मेरे पास है। मेरी आयु भी अभी शेष है; अत: मैं पाण्डवों को जीतने में समर्थ हूँ। यह सारा भार मुझ पर छोड़ दिया जाय। ‘महर्षि परशुराम का कृपा प्रसाद पाकर मैं पलक मारते-मारते पाञ्चाल, कारूष तथा मत्स्यदेशीय योद्धाओं और कुंतीकुमारों को पुत्र-पोत्रों सहित मारकर शस्त्र द्वारा जीते हुए पुण्य-लोकों में जाऊंगा। ‘पितामह भीष्म आपके ही पास रहें, आचार्य द्रोण तथा समस्त मुख्य-मुख्य भूपाल भी आपके ही समीप रहें। मैं अपनी प्रधान सेना के साथ जाकर अकेले ही सब कुंतीकमारों को मार डालुंगा। इसका सारा भार मुझ पर रहा’।[1]
भीष्म के द्वारा कर्ण पर आक्षेप
कर्ण को ऐसी बातें करते देख भीष्म जी ने उससे कहा- ‘कर्ण! क्यों अपनी वीरता की डींग हाक रहा है? जान पड़ता है, काल ने तेरी बुद्धि को ग्रस लिया है। क्या तू नहीं जानता कि युद्ध में तुझ प्रधान वीर के मारे जाने पर सारे धृतराष्ट्र पुत्र ही मृत प्राय हो जायंगे। ‘श्रीकृष्ण सहित अर्जुन ने खाण्डववन का दाह करते समय जो पराक्रम किया था, उसे सुनकर ही बान्धवों सहित तुझे अपने मन पर काबू रखना उचित था। ‘देवेश्वर महात्मा भगवान महेन्द्र ने तुझे जो शक्ति प्रदान की है, वह भगवान केशव के चलाये हुए चक्र से आहत हो समरभूमि में छिन्न-भिन्न एवं दग्ध हो जायेगी। इसे तू अपनी आंखों से देख लेगा। ‘तेरे पास जो सर्प-मुख बाण प्रकाशित होता है और तू प्रयत्नपूर्वक सदा ही पुष्पमाला आदि श्रेष्ठ उपचारों द्वारा जिसकी पूजा किया करता है, वह पाण्डुपुत्र अर्जुन के बाण-समूहों से छिन्न-भिन्न होकर तेरे साथ ही नष्ट हो जायगा। ‘कर्ण! बाणासुर और भौमासुर का वध करने वाले वे वसुदेवनंदन भगवान श्रीकृष्ण किरीटधारी अर्जुन की रक्षा करते हैं, जो तेरे-जैसे तथा तुझसे भी प्रबल शत्रुओं का भयंकर संग्राम में विनाश कर सकते हैं।'[1]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
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| अम्बा और परशुराम का संवाद तथा अकृतव्रण की सलाह
| परशुराम और भीष्म का रोषपूर्ण वार्तालाप
| परशुराम और भीष्म का युद्ध हेतु कुरुक्षेत्र में उतरना
| परशुराम के साथ भीष्म द्वारा युद्ध प्रारम्भ करना
| परशुराम और भीष्म का घोर युद्ध
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