करें कभी कोई मेरा अति मान-समादर-स्तुति-सत्कार।
अथवा परुष वचन कह, दारुण पदत्राणों से करे प्रहार॥
दोनों में ही देखूँ मैं, प्रिय श्याम! तुम्हारा सुन्दर रूप।
हँसकर स्वागत करूँ हृदय से, प्राप्त करूँ सुख परम अनूप॥
कभी न भूलूँ, भरे तुम्हीं हो प्यारे! सबमें सदा विचित्र।
लीलामय दिखलाते लीला, बनकर घोर शत्रु, शुचि मित्र॥
जो कुछ है, सब तुम हो केवल, होता जो, सब लीला-लास्य।
घोर भयानक, परम मधुर तुम करते लीला-क्रंदन-हास्य॥
देख तुम्हें मैं सदा सर्वगत, सत्-चित्-आँनदमय, स्वच्छन्द।
करूँ सदा अभिनन्दन सबका, अति विनम्र मन भर आनन्द॥