टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कुन्ती
- ↑ करमगत = प्रारब्ध का नियम। टारे... टरे = रोके नहीं रुकती वा बदलती। सतवादी = सत्यवादी, सत्य के नियम पालन करने वाले। नीच... भरे = टहलुए का काम करते रहे। हाड = हड्डियाँ वा शरीर। हिमालय पर्वत पर। गरे = गले। जग्य = यज्ञ। लेण = लेने को। इन्द्रासण = इन्द्र की पदवी। धरे = भेज दिये गए। विख से अम्रित करे = बुराई को भलाई में परिणत कर देता है।
विशेष- इस पद में दर्शाये गए भाव की तुलना के लिए क्रमश: कबीर साहब और सूरदास के निम्न-लिखित पदों को देखिये।
करम गति टारे नाहिं टरि।
... ..... ...... ...... ....... ....
नीच हाथ हरिचंद बिकाने, बलि पाताल धरी।
... ..... ...... ...... ....... ....
पांडव जिनके आपु सारथी, तिन पर विपति परी। इ.।
-कबीर साहब।
तथा, भावी काहू सौं न टरै।
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अरजुन के हरि हुते सारथी सोऊ बन निकरै।
हरिचंद सो को जगदाता, खो घर नीच भरै। इ. सूरदास
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