ऊधौ बूझति है अनुमान -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


ऊधौ बूझति है अनुमान।
देखियत नाहिं जतन जीवे कौ, इतहिं बिरह उत ज्ञान।।
इतहिं चंद चदन समीर मिलि, लागत अनल निधान।
उत निरगुन अवलोकत मन कौ, कठिन निरोघन प्रान।।
इत भूषन भय करत अंग कौ, सब निसि जागि विहान।
उत कहुँ सुन्न समाधि कछु नहिं, गढ़ जोग कौ ज्ञान।।
दुसह दुराज नृपति बड़े दोऊ, दुख कौ उभै समान।
को राखे ‘सूरज’ इहिं अवसर, कमलनयन बिनु आन।।3892।।

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