ऊधौ बात तिहारी को सुनै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग सारंग


(ऊधौ) बात तिहारी को सुनै।
हरि-पद-पंकज मन मधुकर गह्यौ, मन बिनु बात न कछू बनै।।
जोग जुगुति बिस्तार बड़ौ है, ऐसो ठौर नहीं अपनै।
ब्रजवासिन इतनोइ हियौ है, कृष्न बसत संकोच बनै।।
तहाँ जाहु जहँ बैठे जोगी, इहाँ काम रस रह्यौ घुनै।
हम जु अहीर कृष्न मतमाते, मूरख सौ क्यौ मंत्र बनै।।
जो तुम जानत तप करि पायौ, मौन रहौ तुम घर अपनै।
घर घर फिरत पुकारत ल्यौ ल्यौ, ताही वस्तु कौ मोल हनै।।
भूख न प्यास नींद गइ हरि बिनु, पति, सुत, गृह की कौन गनै।
माया और छूटि गइ ममता, अधिक कहा लौ लोग बनै।।
सो हरि प्रान, प्रान तै बल्लभ, मोहन की लीला अगने।
आवत है तौ कहौ ‘सूर’ प्रभु, नहीं रहौ तुम मौन बनै।।3803।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः